उस एक रात में कई बार मरी हूँ मैं|
सन्नाटा फ़ैला था चारो ओर तुम्हारे न होने से
पूरे आलम में एक अज़ब सी बेचैनी थी
मुझको जमाने की निगाहों से बचाया था क्यूँ
मेरे वजूद पर छाई थी बदहवासी सी
अब जैसे दुनयावी आँखों की किरकिरी हूँ मैं|
उस एक रात में कई बार मरी हूँ मैं||
हम तो पहले ही अकेले थे न शिकवा था कोई
तुमने इन बुझते चरागों में रोशनी क्यूँ की?
तोड़ के जाना ही था जब मेरे ख़्वाबों का महल
दरोदीवार में रोगन की चाँदनी क्यूँ की???
इस अहसास से बार-बार मरी हूँ मैं|
उस एक रात कई बार मरी हूँ मैं||
मेरी ख़ामोशियों में क्यूँ आवाज़ें भर दीं
टूटे नगमों को फिर साज़ पे गाया था क्यूँ?
मेरे पन्नों की तो उड़ती थी फटी सी चिंदीयां
उसे गुलदान में दिल के सज़ाया था क्यूँ?
टूटे किरचों में गुलदान के वहीं बिखरी हूँ मैं|
उस एक रात में कई बार मरी हूँ मैं||
......................................................तरुणा||
21 comments:
Bahut khoob.... Mere blog par bhi aap saadar aamantrit hain....
इस अहसास से बार-बार मरी हूँ मैं|
उस एक रात कई बार मरी हूँ मैं||
................बहुत ही प्यारे शब्द ....अपना अर्थ स्वयं कहते है ...तरुना जी बहुत ही अर्थभाव रचना
wouuu bahut sundar rachana aapki di dil bhar aaya
Tanj ji ... Bahut Shukriya... :)
Praveen ji... bahut aabhaari hoon ki aapko meri rachna pasand aayi... :)
Shiv Kumar ji... Bahut Shukriya... aap ki taareef ke liye bahut Aabhaari hoon... :)
तोड़ के जाना ही था जब मेरे ख़्वाबों का महल
दरोदीवार में रोगन की चाँदनी क्यूँ की???
इस अहसास से बार-बार मरी हूँ मैं|
उस एक रात कई बार मरी हूँ मैं||
bahut sundar taruna ji , kaveeta me ek tees mahasoos huyi , jisne dil ko chhoo liya, bahut shubhkamnaayen , shekhar shrivastava
तोड़ के जाना ही था जब मेरे ख़्वाबों का महल
दरोदीवार में रोगन की चाँदनी क्यूँ की???
इस अहसास से बार-बार मरी हूँ मैं|
उस एक रात कई बार मरी हूँ मैं||
तोड़ के जाना ही था जब मेरे ख़्वाबों का महल
दरोदीवार में रोगन की चाँदनी क्यूँ की???
इस अहसास से बार-बार मरी हूँ मैं|
उस एक रात कई बार मरी हूँ मैं||
Bahut bahut Shukriya.... Shekhar ji... :))
Priyanka... Soo many thanksss ... :)))
गुलदान में दिल के सज़ाया था क्यूँ?
टूटे किरचों में गुलदान के वहीं बिखरी हूँ मैं|
उस एक रात में कई बार मरी हूँ मैं|| ****bahut marmik
wahhh!!!!!!!...bahut khoob.... splendid.
hota hai ji aisa bahut baar hota hai ....bahut sundar likha aapne
हम तो पहले ही अकेले थे न शिकवा था कोई
तुमने इन बुझते चरागों में रोशनी क्यूँ की?
तोड़ के जाना ही था जब मेरे ख़्वाबों का महल
दरोदीवार में रोगन की चाँदनी क्यूँ की???
इस अहसास से बार-बार मरी हूँ मैं|
उस एक रात कई बार मरी हूँ मैं||
वाह बेहद सुन्दरता से सारे भाव उकेरे हैं आपने बधाई स्वीकारें
Nice lines
such a heart touching post
hats off to you
Gope Bhaiya ... bahut hi aabhaari hoon.. :)
Rajesh ji... Thanks a lot... :))
Upaasna ji ... bahut hi shukraguzaar hoon... :))
Rishi ji... Soo many thanksss .. :))
Rahul Soni ji.... Many many thankss .. :))
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