Wednesday, July 30, 2014

टुकड़ा टुकड़ा मैं.... !!!



रेज़ा रेज़ा छलकी हूँ मैं .... टुकड़ा टुकड़ा बिखरी हूँ....
धज्जी धज्जी हो गई हूँ मैं .. रेशा रेशा चिटकी हूँ ;

उसने तो था मुझको तराशा.... टुकड़ों में से कांच के...
जाते ही अब उसके क्यूँ मैं.. अँधेरो में फिर सिमटी हूँ ;

क़ाबू न था जब अपने पे .. महफ़िल में क्यूँ गई थी मैं...
रुसवाई होने से पहले ....... कितना ही तो भटकी हूँ ;

मर मर के मैं जियूं अब तो ... यही सज़ा है अब मेरी...
रहबर छोड़ गया है मुझको... उस राह में अब भी अटकी हूँ ;

था अमृत जब पास में मेरे .. किया न उसका मोल कभी..
कैसे बताऊं किस मुश्किल से... ज़हर दवा सा गटकी हूँ...!!

.........................................................................'तरुणा'...!!!



Reza reza chhalki hoon main .... tukda tukda bikhri hoon... 
Dhajji dhajji ho gayi hoon main .... resha resha chitki hoon ;

Usne to tha mujhko tarasha .... tukdon me se kaanch ke...
Jaate hi ab uske kyun main ... andheron me phir simati hoon ;

Qaaboo na tha jab apne pe .. mehfil me kyun gayi thi main..
Ruswaayi hone se pahle ....... kitna hi to bhatki hoon ;

Mar mar ke main jiyun ab to ....... yahi saza hai ab meri ...
Rahbar chhod gaya hai mujhko... us raah me ab bhi ataki hoon ;

Tha amrit jab paas me mere ..... kiya na uska mol kabhi....
Kaise bataun kis mushqil se ... zehar dawa sa gatki hoon... !!

...............................................................................................'Taruna'... !!!



Tuesday, July 29, 2014

ये ईद.... !!!



पुरनूर सुबह ले कर....मुस्काती हैं ये ईद...
पैग़ाम मोहब्बत का...फैलाती है ये ईद...

सेवइयां मीठी सी.... और शीर की वो खुश्बू....
बचपन की तरह अब भी...ललचाती है ये ईद..

दीदार हो दिलबर का...या आरज़ू मिलने की....
छत चाँद के बहाने से  ... आ जाती है ये ईद...

गलियों में महकती थी..घर-घर में चहकती थी..
अब सत्ता के दर पर ...  रह जाती है ये ईद...

तोहफ़े तो बन गए हैं... बाज़ार की रौनक अब...
महंगाई में मुफ़लिस को... तरसाती है ये ईद...

वो दौर भी देखा है... सांझे थे सब त्यौहार...
दौहराव उसी को फ़िर...सिखलाती है ये ईद...

...........................................................'तरुणा'...!!!

Purnoor subah le kar...muskaati hai ye Eid...
Paigaam Mohabbat ka... failaati hai ye Id....

Sevaiya mithi si ... aur Sheer ki vo khushboo...
Bachpan ki tarah ab bhi.. lalchaati hai ye Eid...

Deedaar ho dilbar ka...ya aarzoo milne ki...
Chhat chaand ke bahaane... aa jaati hai ye Eid..

Galiyon me mahakti thi..ghar-ghar me chahkti thi...
Ab satta ke dar par ....  rah jaati hai ye Eid....

Tauhfe to ban gaye hain...baazaar ki raunaq ab...
Menhgaayi me muflis ko..  tarsaati hai ye Eid...

Vo daur bhi dekha hai... saanjhe the sab tyauhaar..
Dauhraav usee ko phir.. sikhlaati hai ye Eid....

......................................................................'Taruna'.. !!!




Tuesday, July 22, 2014

मीलों का सफ़र... !!!




































दो कदम का फ़ासला .. मीलों का सफ़र हो गया...
पंछी सारे उड़ गए  .... और ठूठ शज़र हो गया  ;

इक उसकी निग़ाह से .. मुझपे हुआ है वो असर...
एक ही लम्हे में पूरा ....  जीवन गुज़र हो गया ;

उससे ही वाबस्ता हैं .. यकीनन मेरी हर राह भी...
हादसा-ए-ज़िंदगी  .. अब खुशी की नज़र हो गया ;

अपनी नादानी से आग ..  ख़ुद लगा बैठे हैं हम....
हंसता खिलता आशियां.... वीरां सा घर हो गया ;

मौक़ा पाते ही अब .. चूना लगा देते हैं लोग...
ऐ ख़ुदा ! ..बंदा तेरा .. क्यूं इतना ज़बर हो गया ;

देख के फ़ितरत सभी की... बात अब करते हैं हम...
वक़्त की चोटों का ये.... 'तरु' पे असर हो गया ...!!

...............................................................'तरुणा'... !!!


Do kadam ka faasla... meelon ka safar ho gaya..
Panchhi saare ud gaye.. aur thooth shazar ho gaya ;

Ik uski nigaah se .... mujhpe hua hai vo asar ...
Ek hi lamhe me poora .. jeewan gujar ho gaya ;

Ussey hi vabasta hai .... yakeenan meri har raah bhi ..
Haadsa-e-zindgi  .... ab khushi ki nazar ho gaya ;

Apni nadani se aag ... khud laga baithe hain ham...
Hansta khilta aashiyaan .... veeraan sa ghar ho gaya ;

Mauqa paate hi ab ...  choona  laga dete hain log...
Ai Khuda ! ..banda tera... kyun itna zabar ho gaya ;

Dekh ke fitrat sabhi ki ... baat ab karte hain ham...
Waqt ki choton ka ye ... 'Taru' pe asar ho gaya ...!!

.................................................................................'Taruna'...!!!






Sunday, July 20, 2014

मुकम्मल बारिश..... !!!




वो बरसात के बादल सा... आवारा...इठलाता...
कुछ मस्ती में डूबा सा... कुछ सपने दिखलाता...

मैं तप्त धरा थी... कुछ प्यासी..अधूरी सी....
भीगी न थी कभी भी.. थी ख़्वाबों से दूरी सी...

सराबोर करा मुझे... ख़ूब प्यार की बरसातों में...
भीगती रही...जिनमें मैं... कितनी ही रातों में...

था तो वो एक बादल... बंजारा सा...अंजाना...
था कोई न ठिकाना... उसको तो था जाना.....

भिगों के बारिशों में..  मुझे कर दिया मुकम्मल..
बहता है प्रेम-दरिया अब..ज़िगर में मुसलसल...

न शिकवा किसी से...न कोई गिला करती हूँ...
उस मोहब्बत के पौधे की...हिफाज़त करती हूँ..

उसके नूर की बारिश से... मैं तृप्त हो गई हूँ....
मैं ज़मीं थी बंजर... पूरी मोहब्बत हो गई हूँ...

(मुसलसल-निरंतर)

................................................................'तरुणा'....!!!


Vo barsaat ke baadal sa... aawaara..ithlaata...
Kuchh masti me dooba sa.. kuchh sapne dikhlata..

Main tapt dhara thi...  kuchh pyaasi...adhoori si...
Bheegi na thi kabhi bhi... thi khwaabon se doori si...

Sarabor kara mujhe... khoob pyaar ki barsaaton me...
Bheegti rahi....jinme main... kitni hi raaton me...

Tha to vo ek baadal...banjaara sa...anjaana....
Tha koi na thikaana... usko to tha jaana....

Bhigo ke baarishon me... mujhe kar diya mukammal..
Bahta hai prem-dariya ab... zigar  me musalsal....

Na shiqwa kisi se.... na koi gila karti hoon.....
Us mohabbat ke paudhey ki.. hifazat karti hoon...

Uske noor ki baarish se... main tript ho gayi hoon....
Main zameen thi banjar... poori mohabbat hoon...

(musalsal-continous)

........................................................................'Taruna'...!!!






Thursday, July 17, 2014

फिर आई बरसात.... !!!





















भीगा भीगा सा है मौसम ....  भीगे से एहसास...
कही-अनसुनी बातें कितनी...  सुलग रहे ज़ज़्बात...
पड़ी रिमझिम बौछारें मुझपर .. छेड़ रहे लम्हात...
छलक उतर के खो गई मुझमे .. ये कैसी बरसात ?

खिला खिला बादल सा है.. मन-आंगन में घिर आता तू...
मेरे रेगिस्तानी मन में .... इन्द्रधनुष बन छाता तू....
पानी की छप-छप में ठुमके .. कितने आज लगाता तू....
बूंदों के आरोह-अवरोह में .... कितना है मदमाता तू ;

फिर आज मेरे दायरे से ... दूर आसमां में खो गया..
कोई लरज़ता शरारा जैसे  ... राख़ फिर अब हो गया..
काश ! बता पाती मैं तुझको .. तू कुछ ऐसे छू गया...
बारिश के बहाने फिर ... मेरे सूखे मन को भिगो गया..!!

....................................................................'तरुणा'...!!!


Bheega bheega sa hai mausam... bheege se ehsaas..
Kahi-ansuni baatein kitni  .... sulag rahey zazbaat ...
Padi rimjhim bauchharein mujhpar ... chhed rahe lamhaat...
Chhalak utar ke kho gayi mujhme... ye kaisi barsaat ?

Khila khila badal sa hai... man-aangan me ghir aata tu...
Mere registaani man me .... indradhanush ban chhata tu...
Pani ki chhap chhap me thumke... kitne aaj lagata tu...
boondo ke aaroh-avroh me ... kitna hai madmaata tu ;

Phir aaj mere daayre se .... dur aasmaan me kho gaya..
Koi larazta sharara jaise .... raakh phir ab ho gaya ...
Kaash ! bata paati main tujhko ... tu kuchh aise chhu gaya..
Baarish ke bahane phir .... mere sookhe man ko bhigo gaya ..!!


.....................................................................................................'Taruna'...!!!

Tuesday, July 15, 2014

तलाश ख़ुद की.... !!!

















ख़ुद को तलाशती हूँ ... ख़ुद में...
ख़ुद की तबाही का.. इरादा न था..

ख़ुद का पता पूछती हूँ .. ख़ुद से...
ख़ुद की गहराई का.. अंदाज़ा न था..

ख़ुद को तलाशती .. भटकी हूँ बहुत..
ख़ुद की परछाई का.. इशारा न था.. 

ख़ुद में जो खोज लूं ... ख़ुद को...
ख़ुद की ख़ुशी का .. तकाज़ा न था..

ख़ुद में खो गई हूँ ... ख़ुद ही ...
ख़ुद का कोई भी.. दरवाज़ा न था..

ख़ुद की पहचान हो गई .. ख़ुद से ..
ख़ुद से बेहतर कोई ..नज़ारा न था..

............................................'तरुणा'...!!!!


Khud ko talaashti hoon .. khud me ..
Khud ki tabaahi ka .. iraada na tha... 

Khud ka pata poochhti hoon ..khud se ..
Khud ki gehraayi ka .... andaaza na tha ...

Khud ko talaashti .. bhatki hoon bahut ..
Khud ki parchhayi ka .. ishaara na tha ..

Khud me jo khoj loon .. khud ko ... 
Khud ki khushi ka .. takaaza na tha ..

Khud me kho gayi hoon ... khud hi... 
Khud ka koi bhi ... darwaaza na tha ... 

Khud ki pehchaan ho gayi .. khud se ... 
Khud se behtar koi ... nazaara na tha .. 

.......................................................'Taruna'...!!!

Wednesday, July 9, 2014

नए आयाम...!!!




ज़िंदगी के हर आयाम पर .. ज़ज्बे कितने मचल गए....
कुछ ख्व़ाब टूटे थे मगर ... कुछ नए भी तो खिल गए ;

जो गुल खिले थे शाख़ पर .... सराहा उन्हें सभी ने है...
जो गुल ज़मीं पर गिर पड़े ..... पैरों तले कुचल गए ;

इस राहे-ज़िंदगी में कितने .. मोड़ तो आए मगर...
साथ छूटा है पुराना तो ... नए अहबाब भी मिल गए ;
(अहबाब-मित्र)

तब ग़ैरों की हथकड़ियां थीं.... अब बेड़ियां अपनों की हैं...
आज़ाद हम हुए नहीं .... बस चेहरे हैं बदल गए ;

नफरत की आँधियों में तो... कोई दम मुझे दिखता नहीं...
जबसे मुहब्बत के चराग़... हज़ारों इस दिल में जल गए ;

कोई साथ दे के.. न दे 'तरु' .... रोते रहें .. क्यूँ  रोना यही...
मंसूबे हैं सबके जुदा जुदा ...  क्या शिकवा जो बदल गए ....!!

...............................................................................'तरुणा'...!!!



Zindgi ke har aayaam par ..... zazbe kitne machal gaye... 
Kuchh khwaab tute the magar .. kuchh naye bhi to khil gaye ;

Jo gul khile the shaakh par.... saraha unhe sabhi ne hai ....
Jo gul zameen par gir pade .... pairon tale kuchal gaye ;

Is raahe-zindgi me kitne ...... mod to aaye magar...
Saath chhuta hai purana to .... naye ehbaab bhi mil gaye ;
(ehbaab-friend)

Tab gairon ki hathkadiyaan thi.... ab bediyaan apno ki hain..
Aazaad ham huye nahi ..... bas chehre hain badal gaye ;

Nafrat ki aandhiyon me to .... koi dam nahi dikhta mujhe....
Jabse muhabbat ke charaag ... hazaron is dil me jal gaye ;


Koi saath de ke ... na de 'Taru' ... rote rahein .. kyu rona yahi..
Mansoobe hain sabke juda juda .. kya shiqwa jo badal gaye ..!!


.............................................................................................'Taruna'..!!!



























Tuesday, July 8, 2014

यही है ज़िंदगी... ?

















क्या तूने कभी जाना ... मुश्किल है गम छुपाना...
सेहरा के बीच जैसे .... बारिश में भीग जाना ;

ज़िन्दा रहोगे तुम भी ... ज़िन्दा रहेंगे हम भी....
है ज़िंदगी यही क्या ... या है यही मर जाना ;

महफ़िल मेरी सजती थी ... इक तेरे ही आने से...
बस याद रह गई है ...... गुज़रा है वो ज़माना ;

कभी आया न मुझे भी .. कोई काम दूसरा सा...
तेरे प्यार ने सिखाया ... मुझे हद से गुज़र जाना ;

कभी करवटें लेतीं हैं ... कभी चौक के उठती है...
है चैन नहीं पल भर .... तेरी याद़ों को क्यूँ जानां ;

शिकवा करे क्यूँ तुझसे  .. किससे गिला करे अब... 
चुना है  'तरु' ने  ख़ुद ही ... इस दरिया में बह जाना ..!!

...................................................................'तरुणा'... !!!


Kya tune kabhi jana ... mushqil hai gam chhupana...
Sehra ke beech jaise .... baarish me bheeg jana ;

Zinda rahoge tum bhi .... zinda rahengein ham bhi ...
Hai zindgi yahi kya ......... ya hai yahi mar jana ;

Mehfil meri sajti thi .... ik tere hi aane se ...
Bas yaad rah gayi hai .. guzra hai wo zamana ;

Kabi aaya na mujhe bhi .... koi kaam dusra sa ..
Tere pyaar ne  sikhaya  .. mujhe had se guzar jana ;

Kabhi karvatein leti hain ... kabhi chauk ke uthti hain...
Hai chain nahi pal bhar .... teri yaadon ko kyun jana ;

Shiqwa kare kyun tujhse ... kissey gila karein ab ...
Chuna hai 'Taru' ne khud hi ... is dariya me beh jana ...!!

.........................................................................................'Taruna'... !!!

Sunday, July 6, 2014

वो एक क़तरा... !!!





आ देख ..तेरे बिन अब... क्या हाल है मेरा...
मरना ही नहीं ... जीना भी मुहाल है मेरा ;

इक क़तरा बहाया था ... समुन्दर उमड़ गया...
आया था तलातुम जहाँ ... वो गाल हैं मेरा ;

(तलातुम--तूफ़ान...एक के बाद एक लहर)

मेरे बगैर चैन-ओ-सुकूं...क्या है तेरे दिल को...
दे न जवाब फिर भी ... ये सवाल है मेरा ;

सबसे नज़र बचाके ... जिसे सूंघता है तू...
है मेरी महक उसमे ... वो रुमाल है मेरा ;

तूफां सौ छुपा के भी .. हंस देती हूँ हर रोज़...
है ज़िगर ये 'तरु' का... क्या कमाल है मेरा ..!!

...............................................................'तरुणा'...!!!


Aa dekh ... tere bin ab ... kya haal hai mera...
Marna hi nahi .... jeena bhi .. muhaal hai mera :

Ek qatra bahaya tha ... samundar umad gaya ...
Aaya tha talatum jahan... wo gaal hai mera ;

(Talaum--wave after wave… storm)


Mere bagair chain-o-sukun... kya hai tere dil ko..
De na jawaab phir bhi ye.... sawaal hai mera ;

Sabse nazar bachake ... jisey soonghta hai tu...
Hai meri mehak usme.... wo rumaal hai mera ;

Toofan sau chhupa ke bhi .. hans deti hun har roz...
Hai zigar ye 'Taru' ka ... kya kamaal hai mera ...!!

.............................................................................'Taruna'... !!!

Thursday, July 3, 2014

इश्क़ मुझको है ... वहशत तो नहीं..... !!!




















दिल करता है मुहब्बत .... कोई वहशत नहीं करता...
उसको पहचानने में ..... कभी गफ़लत नहीं करता ;

दिल की खिड़कियां खोल .... झांक लेता है वो....
दरवाज़ा खटखटाने की .. भी ज़हमत नहीं करता ;

सदियों तक मैं बैठी रहूं  .... इंतज़ार में उसके...
इस हद तक तो मुझसे ... वो मुहब्बत नहीं करता ;

मुहब्बत दोगुनी होती है... मुहब्बत बांटने भर से...
नफ़रत फैलाने पर ... कोई इज्ज़त नहीं करता ;

लगता है साफ़गोई का ... ज़माना नहीं रहा...
दिल साफ़ हो जिनका... कोई सोहबत नहीं करता..!!


.................................................................'तरुणा'... !!!



Dil karta hai muhabbat .. koi vehshat nahi karta..
Usko pehchaan'ne me .. kabhi gaflat nahi karta ;

Dil ki khidkiyaan khol ....  jhaank leta hai wo ...
Darwaza khatkhatane ki .. bhi zehmat nahi karta ;

Sadiyon tak main baithi rahun ... intzaar me uske...
Is had tak to mujhse... wo muhabbat nahi karta ;

Muhabbat doguni hoti hai ... muhabbat baantne bhar se..
Nafrat failaane par ....... koi izzat nahi karta   ;

Lagta hai saafgoi ka  ... zamaana nahi raha ...
Dil saaf ho jinka .... koi sohbat nahi karta ...!!


..........................................................................'Taruna'...!!!











Tuesday, July 1, 2014

जलता वज़ूद......!!!





घर में कई बार है ... सूरज को बुला कर देखा......
रोशनी हो न सकी .. खुद को जला कर देखा ;

आईने में नज़र आता है... कोई और ही शख्स....
अक्स से हाथ मैंने जब भी ... मिला कर देखा ;

चलता रहता है मुसलसल ... वो मेरे साथ में ही...
खुद को जब भी है..अलग राह ... चला कर देखा ;

खुलने लगते हैं मेरे ज़ख्म ... रात में अक्सर....
दिन में जिनको है..कई बार ... सिला कर देखा ;

तेरी परछाई के होने का .... इक सुबूत नहीं...
दिल के टुकड़ों को मैंने जब भी .. मिला कर देखा ;

राख बचती है ना ... वज़ूद के निशां बाक़ी....
इश्क़ में जब भी 'तरु' को है... जला कर देखा...!!

.................................................................'तरुणा'...!!!


Ghar me kai baar hai... sooraj ko bula kar dekha...
Roshni ho na saki ..... khud ko jala kar dekha ;

Aaine me nazar aata hai..  koi aur hi shakhs....
Aks se haath maine jab bhi... mila kar dekha ;

Chalta rahta hai musalsal ... wo mere saath me hi..
Khud ko jab bhi hai..alag raah ... chala kar dekha ;

Khulne lagte hain mere zakhm... raat me aksar...
Din me jinko hai.. kai baar.... sila kar dekha ;

Teri parchhayi ke hone ka ... ek suboot nahi...
Dil ke tukdon ko maine jab bhi... mila kar dekha ;

Raak bachti hai na.... wazood ke nishaan baaqi..
Ishq me jab bhi 'Taru' ko hai... jala kar dekha...!!


.........................................................................'Taruna'...!!!