Thursday, June 27, 2013

आस्था का सफ़र....???


क्या क्या न देखा...अबकि इस आस्था के सफ़र में...

कहीं तूफां में उजड़ते...घर-दरख्त देखे......
कहीं माँ-बाप का हाथ छोड़...बहते बच्चे देखे....
कहीं भूख से....तड़पते मरते...मंज़र देखे.....

इंसानों की बनाई दुनिया...पल में उजड़ती देखी....
बौराई खौफ़नाक प्रकृति की...अभिव्यक्ति देखी...
कहीं अपनों को न बचा पाने की...लाचारी देखी.....

कहीं ईश्वर की आस्था से उठता...विश्वास देखा...
तो कहीं पथराई आँखों में..दम तोड़ती आस देखा...
कहीं इस घड़ी में...आरोपों-प्रत्यारोपों का प्रयास देखा...

हमने पत्थर के ख़ुदा...इंसां में छुपे जानवर देखे.....
लोगों के आंसू पोछतें...इंसां-रुपी ख़ुदा देखें.....
दुआ में उठतें हाथ...तो किसी की दुआ बनते इंसां  देखें...

बस नहीं देखना अब...और ये आस्था के नाम का चक्कर...

छोड़ें ये मंदिर मंदिर भटकना...और धर्म का ये सफ़र.....
मन-मंदिर को देखें...और बसायें प्यार का नगर......

शुरू करें अपने ही अंदर...नर से नारायण की यात्रा......
इंसान हैं..पहचानें ख़ुद को..कम करें दुर्गुणों की मात्रा...
स्वयं प्रकाश हैं हम...प्रकाशित है हमारी हर जात्रा......
....................................................................'तरुणा'....!!!

Saturday, June 15, 2013

मौसम का इशारा....





बार बार पिया ने पुकारा...करके कुछ इशारा...
प्यार का मौसम है....झूमता चमन है सारा...
कहो कोई तो उसे जाके...न मेरे दिल में झांके...
कहे है मुझसे बैरी...तुझे अपने घर की पड़ी है...

मौसम है बड़ा सुहाना...माना ये हमने माना...
भीनी भीनी फुहारें हैं....बहारे खिली पड़ी है....
शब बीत रही है.....धीरे धीरे...हौले हौले....
ऐसे में अकेले...घर से न निकलने की घड़ी है.....

चमन झूम रहा है.....मेरा भी मन तरस रहा है....
हर तरफ़ जैसे नूर कोई..झनझना के बरस रहा है...
कैसे आऊँ काली है रतिया...सूनी पड़ी है डगरिया.....
मिलनें आऊँ मैं कैसे...बिज़ली जोर की चमक पड़ी है..

चल तो दूँ साथ तेरे...कुछ तो गम है मुझे घेरे...
कुछ ज़माने का भी है डर...कुछ ये बादल घनेरे...
राहें हैं सुनसान अंजानों का डर..कही आहट भी हुई है..
ऐसे में ये मेरी...निगोड़ी पायल भी बज पड़ी है....
.................................................................तरुणा.....!!!

Wednesday, June 12, 2013

वो मोड़.....




तुम चले गए...जिस मोड़ से मुड़कर....
वो पल... वो लम्हा...मेरे दिल से गुज़रता रहा...
इक दीवार हल्की सी ही तो थी...हमारे दरमियाँ....
न कोशिश की मैंने भी...न हाथ तुमने ही बढ़ाया....
साल बदला...महीने बदले...दिन और हालात भी बदलें....
न बदला कहीं कुछ तो...तुझसे मेरा प्यार न बदला....
तेरी हर वो बात...वो रात...मुझसे हर घड़ी गुज़रती रही....
वक़्त ने बालों में...चांदी भर दी....
पर इस दिल से तेरी याद़ों की...रोशनी न बुझ सकी....
वक़्त बीतता गया....मुझपे गुज़रता गया....
क़ीमत कुछ न रही...मैं ख़र्च होती गई.....
फ़िर भी तू मेरे ज़ेहन-ओ-दिल से नहीं मिट सका....
वो मोड़ आज तक है...मुझसे जुड़ा हुआ.....
मन करता है..अब भी मेरा..मिटा दूं वो फ़ासला....
सिर्फ़ एक झीनी सी दीवार...ही तो थी....
क्या बढ़ा दूं मैं हाथ...क्या लेगा तू थाम....
इस कशमकश में...ज़िंदगी...ज़िंदगी न रही.....
मैं रह गई...उस मोड़ पे...खड़ी की खड़ी.....

.......................................................'तरुणा'....!!!

Saturday, June 1, 2013

वो तेरी याद.......


 


मैं होके भी...नहीं हूँ....
तुम न होके भी...हर सू हो....
चाँद आता है रोज़...आँगन में मेरे....
तू नहीं हैं तो....रोशनी नहीं होती....
दूर तक फ़ैली हुई हैं....तन्हाई.....
ये निखरा आसमां....वो धुली चांदनी.....
क्यूं..जी जलाने को रात फ़िर आई...???
देर तक राह...देखती मैं रही.....
जहां तक...निग़ाहें पहुँच सकीं हैं मेरी.....
कोई आहट नहीं हैं....क़दमों की....
तेरी सूरत भी न...नज़र आई....
अब..अकेले न कट सकेगा जीवन....
मधुबन भी...हो रहा निर्जन....
फूल तो रोज़ यहाँ...खिलतें हैं....
कोई खुश्बू नहीं...मगर आई....
बस महकती है....सिर्फ़ याद तेरी.....
और रोशन हैं...मेरी तन्हाई.....
..............................................'तरुणा'....!!!