Sunday, February 28, 2016

इश्क़ की लौ..!!!



इश्क़ की लौ को ज़रा दिल से लगा कर देखो...
चाँद पहलू में बिछा होगा बुलाकर देखो ;
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बात यूँ तो तेरी कड़वी भी भली लगती है...
चाशनी अपनी जुबां में तो मिलाकर देखो ;
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याद से मेरी अगर कोई ख़लल पड़ता है..
याद को मेरी ज़रा दिल से भुला कर देखो ;
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तुम जो कहते हो हमें इश्क़ में पागल हैं हम..
इश्क़ को दिल पे कभी ख़ुद के सजाकर देखो ;
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बात छोटी सी सही कहना इशारे ही में..
फ़ैल जाएगी इसे लब पे न लाकर देखो ;
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तुम न सूरज के भरोसे पे यूँ बैठो शब भर ...
है अँधेरा तो कोई दीप जला कर देखो ..!!

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.....................................................'तरुणा'...!!!


Tuesday, February 23, 2016

अलग अलग किरदार...!!!



फ़र्ज़ निभाया दोनों ही ने हम पर जिम्मेदारी थी ...
दोनों के किरदार अलग थे दोनों की फनकारी थी ;
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एक ही शाख़ पे दोनों बैठे एक हमारी आरी थी ..
डाल काट के बेच दी हमने अब बाकी बेकारी थी ;
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दिल का बनी खिलौना थी मैं वो माहिर व्यापारी था...
ख़ूब कमाई हुई हमारी ख़बर यही बाज़ारी थी ;
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दिल में अब वो रहा नहीं है घर में उसके मैं कब हूँ...
हारा फ़र्ज़ से प्यार हमारा सिर्फ यही हकदारी थी ;
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चालें चली बिसात बिछा कर खेला प्यार का खेल बहुत..
दोनों हारे जीत समझ के कैसी ये होशियारी थी ;
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उसको नहीं था मुझसे मतलब बस सौंपा घरबार मुझे..
कोई भी अधिकार नहीं था जैसे एक लाचारी थी ;
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दुनियादार बड़ा था वो और मैं दिल से मजबूर बहुत...
खूब मिलावट की रिश्ते में सड़क बनी सरकारी थी ;
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रोग प्रेम का लगा था मुझको दौलत की थी ललक उसे..
बारी बारी जूझ रहे थे अजब सी ये बीमारी थी ...!!
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.................................................................'तरुणा'...!!!

Saturday, February 20, 2016

इश्क़ की आदत बाक़ी है..!!!


इतनी तो इनायत बाक़ी है ..
क़िरदार में रंगत बाक़ी है ;
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दुनिया ने सब कुछ लूट लिया...
तेरे इश्क़ की दौलत बाक़ी है ;
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गर पाप करो तो सोचो भी ..
उसकी भी अदालत बाक़ी है ;
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हैं ज़ीस्त बची ये आधी पर..
कुछ और मसाफ़त बाक़ी है ;

(मसाफ़त-सफ़र/ journey )
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कुछ और हवादिस आयेंगे..
हाँ और अज़ीयत बाक़ी है ;

(हवादिस–हादसे,अज़ीयत- यातना)
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वो हाथ नहीं फैला पायी...
लगता है ग़ैरत बाक़ी है ;
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फिर आज बुलाया है मुझको...
कुछ और फ़जीहत बाक़ी है ;
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ठुकराया उसे बरसों बीते ..
अब भी वो नदामत बाक़ी है ;

(नदामत-पछतावा/ regret)
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सब कुछ तो पीछे छूट गया...
बस इश्क़ की आदत बाक़ी है ..!!
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....................................'तरुणा'...!!!



Tuesday, February 9, 2016

ये माज़रा ...!!!



अक्स अपना ही ख़ुद से ख़फा देखकर ...
लापता ख़ुद हूँ ये माज़रा देखकर ;
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भूल अपनी किसी को न आई नज़र ...
ख़ुश हैं सब दूसरों की ख़ता देखकर ;
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बज़्म से फिर भला कैसे जाते बता..
जम गए ज़िक्र तेरा छिड़ा देखकर ;
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बात दिल की दबी की दबी रह गई ..
रंग चेहरे का बदला हुआ देखकर ;
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दुश्मनों से नही अब कोई भी गिला..
दोस्तों ने जो दी वो दगा देखकर ;
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कल तलक तो हमारे शनासा थे वो...
आज बदले हैं बदली हवा देखकर ;
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प्यार पर जान हम भी छिड़कते सनम...
बात बिगड़ी तुम्हारी अना देखकर ;
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साफ़ कह दो छुपाओ न क्या बात है ..
हम भी उलझे तुम्हे रूठता देखकर ;
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................................................'तरुणा'...!!!


Friday, February 5, 2016

धड़काया तो होता... !!!


दिले नाजुक को धड़काया तो होता...
मेरी साँसों को महकाया तो होता ;
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मैं आँखें मूँद के आती जो पीछे...
कभी कुछ ऐसा फ़रमाया तो होता ;
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मैं उड़ कर ही पहुँच जाती वहाँ पर..
मेरे सरकार बुलवाया तो होता ;
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दिलो की दूरियाँ फिर कम भी होतीं..
अगर मिलजुल के सुलझाया तो होता ;
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झुलसती धूप की मानिन्द हूँ मैं..
तू ऐसे में घना साया तो होता ;
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सफ़र तय दूर तक करके मैं आती..
मुझे कुछ देर भटकाया तो होता ;
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तुझे यकलख़त खुद को सौंप देती...
ज़रा दामन को फैलाया तो होता...!!
(यकलख़त-पूर्णतया/ entirely)
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...........................................'तरुणा' ..!!!