Thursday, December 22, 2016

प्यार का मौसम...!!!


प्यार का जब कोई भी मौसम नहीं..
मैं अगर बिखरी हूँ इसका ग़म नहीं ;
.
मेरी होकर भी सितम करती है ये..
कैसे कह दूँ ज़िंदगी बरहम नहीं ;
.
ज़िन्दगी के ज़ख्म जो भर देगा अब...
चारागर के पास वो मरहम नहीं ;
.
हर तरफ़ इक नूर की चादर बिछी...
ज़िंदगी सौगात तेरी कम नहीं ;
.
वो सुला कर जा चुका दिल का रबाब...
अब फिजां में प्यार की सरगम नहीं ;
.
रात भर रोती रही थी कहकशां ..
क्या वही आँसू तो ये शबनम नहीं..?
.
हर क़दम पर साथ ग़म के है ख़ुशी..
सूत है ये ज़िंदगी रेशम नहीं ;
.
देर से जीते मगर जीतेगा सच..
झूठ का ऊँचा कभी परचम नहीं ;
.
ज़िंदगी तू हार बैठी मुझसे क्यूँ...
आज़माने को बचा क्या दम नहीं ;
.
इस ग़ज़ल में ख़ूबियाँ भी हैं ‘सदफ़’...
गौर से देखो तो कमियाँ कम नहीं… !!
.
.........................तरुणा मिश्रा ‘सदफ़’...!!!