Thursday, April 28, 2016

मेरी कहानी...!!!



बात बरसों से जो सुनानी थी ..
हाँ वही तो मेरी कहानी थी ;
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एक राजा था एक रानी थी...
प्यार की रस्म भी निभानी थी ;
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जिस मुहब्बत के दम पे ज़िन्दा हूँ..
बस फ़कत बात वो बतानी थी ;
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उसमे गहराई का समंदर था ...
हाँ मगर दरिया सी रवानी थी ;
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बूँद सावन से मिल गई जैसे..
आँख में इक यही निशानी थी ;
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ताज़गी रुख़ पे थी अजब उसके....
वैसे तस्वीर तो पुरानी थी ;
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मेरी साँसें महक उठीं इक दम..
क्या वहाँ कोई रात रानी थी ;
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रंग जो भर गयी है 'तरुणा' में...
हाय कैसी अजब जवानी थी...!!
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...................................'तरुणा'...!!!


Sunday, April 17, 2016

आँख बचा कर..!!!




कब तक यूँ नज़दीक से मेरे आँख बचा कर जाओगे..
तन्हाई की धूप में आख़िर कब तक तुम झुल्साओगे ;
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एक दिलासा तो दे जाओ हो चाहे वो झूठा ही..
“जा तो रहे हो ये तो बता दो लौट के कब तक आओगे “
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इक सच्चे साथी को पाना दुनिया में आसान कहाँ ..
मुझसे तो तुम निभा न पाए किससे और निभाओगे ;
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प्यार -मुहब्बत रिश्ता-नाता सब कुछ तुम से सच्चा है...
तोड़ के पावन प्यार का बंधन ख़ुश कैसे रह पाओगे ;
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छोटे-मोटे झगड़े-झंझट हर रिश्ते में होते हैं ...
तुम ख़ुद ही जब समझ न पाए फिर किसको समझाओगे ;
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नीचे देख नहीं चलते हो उड़ते सिर्फ़ हवा में हो..
छोटे पत्थर से तुम बचना वरना ठोकर खाओगे ;
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अपनी राह नहीं चुन पाए औरों से उम्मीदें क्यूँ...
जैसे कर्म करोगे आख़िर फल वैसा ही पाओगे ;
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रिश्तों की क़ातिल होती है ये तलवार तकब्बुर की..
चेत न पाए अगर अभी तुम बाद में फिर पछताओगे ;
(तकब्बुर-घमंड)
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मांगी थी इमदाद ज़रा सी अपना तुमको समझा था..
मुझको ये मालूम कहाँ था तुम अहसान जताओगे ;
(इमदाद-मदद)
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चलती है ये दुनिया ‘तरुणा’ चाहत के ही दम पर बस..
नफ़रत में गर उलझ गए तो खाक़ में ख़ुद मिल जाओगे...!!
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..........................................................................'तरुणा'...!!!









Wednesday, April 13, 2016

मुस्कुराती ग़ज़ल...!!!


मेरे ख़्वाबों से चल कर जब कभी महफ़िल में आती है ..
कहाँ थी ये ख़बर मुझको ग़ज़ल भी मुस्कुराती है ;
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यही दस्तूर दुनिया का भलों को ही दबाती है ..
अगर रुतबा हुआ ऊँचा बुरों का तो निभाती है ;
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हमेशा हादसों की क़ैद में रहती है बेचारी...
रिहाई तो नहीं पर ज़िंदगानी छटपटाती है ;
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ज़माने की निग़ाहों ने ये देखा है करिश्मा भी..
जो कल मसली गई थी वो कली फिर खिलखिलाती है ;
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कोई शिकवा करूँ कैसे बताओ ज़िन्दगानी से...
मेरी ही सोच जीने के नए नक़्शे बनाती है ;
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मुहब्बत एक धोखा है नहीं होती तो बेहतर था ...
सराबों की तरह ख़्वाबों को ये दिन में दिखाती है ;
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चलो इक बार फिर मासूम बच्चों से ही बन जायें....
हमारी उम्र तो मासूमियत से मात खाती है ;
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मुहब्बत मैंने अपनी जाने किसके नाम लिख दी है..
गुज़रते वक़्त के हमराह ये बढ़ती ही जाती है ;
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रदीफ़ों क़ाफ़ियों के बीच में उलझी रही तरुणा’..
कहानी प्यार की फिर भी ग़ज़ल उसकी सुनाती है ..!!
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..................................................................'तरुणा'...!!!


Sunday, April 10, 2016

हमारी फ़ितरत ...!!!


भले उनको हो आदत बेहिसी की...
हमारी तो है फ़ितरत बंदगी की ;
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गुज़रती हूँ मैं जब उनकी गली से..
मुझे मिलती है आहट ज़िंदगी की ;
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सितम पर वो सितम ढाते हैं ऐसे...
कि हद जैसे हुई बेगानगी की ;
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मुलाक़ातें नहीं अब काम आयें..
हुई है इन्तिहाँ यूँ बेरुखी की ;
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हज़ारों रास्तों पर ढूंढ आए...
कोई आहट नहीं मिलती ख़ुशी की ;
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नुमाइश का ज़माना है ये माना...
रविश क्यूँ छोड़ दूँ मैं सादगी की ;
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यही इक बात तो बदली नहीं है...
ज़रुरत मौत को है ज़िंदगी की ;
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उन्हें जो देख लूं क़ाबू कहाँ फिर...
अजब होती है हालत बेकली की ;
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नहीं सुलझी गिरह रिश्ते की ‘तरुणा’..
वगरना क्या वजह पेचीदगी की ..!!


...........................................'तरुणा'...!!!

Wednesday, April 6, 2016

हँसी जाती नहीं ...!!!


अश्क़ टपकें लाख होंटों की हँसी जाती नहीं ...
आज़माया तो है गम ने पर ख़ुशी जाती नहीं ;
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उसकी हर नेमत पे नाशुक्री किये जाते हैं हम ...
ज़ेहन में ईमां है दिल की काफ़िरी जाती नहीं ;
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आजकल माहौल में भी राम जाने क्या घुला...
अब हवा की जाने क्यूँ आवारगी जाती नहीं ;
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इक कसक कम हो गई तो दूसरी आ जाएगी...
इन सहारों की वजह से शायरी जाती नहीं ;
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नाम पर मय के न जाने क्या पिलाया है मुझे...
होश में रहते हुए भी बेख़ुदी जाती नहीं ;
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क्या बतायें हम कि साहब रोशनी के वास्ते..
घर जलाया खुद जले हैं तीरगी जाती नहीं ;
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बेवफ़ा ने हर कदम पे हमको धोखे तो दिए...
हम भी जिद्दी हैं ग़ज़ब के आशिक़ी जाती नहीं ;
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गालियाँ दो-चार बदले में न दे पाई कभी..
हूँ मैं सादादिल या मेरी बुजदिली जाती नहीं ;
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फ़ख्र है मुझको तो ‘तरुणा’ दुश्मनी पर दोस्त की..
दुश्मनी इतनी बढ़ी पर दोस्ती जाती नहीं ...!!
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...............................................................’तरुणा’....!!!




Friday, April 1, 2016

उलटी हवा .. !!!


हवा उलटी ही बहती जा रही है..
नई पीढ़ी को ये बहका रही है ;
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हर इक सू नफरतों की आँधियाँ हैं..
सियासत रंग क्या दिखला रही है ;
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चरागों काम है जलना तुम्हारा..
हवा माना कि बढ़ती जा रही है ;
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अभी लगता है सोया है वो तूफां..
जो कश्ती कागज़ी इतरा रही है ;
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उठो 'तरुणा' मुहब्बत ढूँढ लाओ...
इसी की ही कमी तड़पा रही है..!!
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......................................'तरुणा'...!!!