Thursday, July 28, 2016

बोझा ...!!!


ज़ख्म यूँ भी छुपाए जाते हैं...
बेवजह मुस्कुराए जाते हैं ;
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रख लिया है भरम यूँ रिश्तों का...
जान कर धोखे खाए जाते हैं ;
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जिसको जन्नत हमें बनाना था...
उसको दोज़ख बनाए जाते हैं ;
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दिल मिले सबसे या मिले न मिले...
हाथ सबसे मिलाए जाते हैं ;
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हर कोई है थका , थके हैं क़दम...
लोग बोझा उठाए जाते हैं ;
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यूँ तो आपस में हँस के मिलते हैं...
दिल हसद से जलाए जाते हैं ;
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दूसरे पल की है ख़बर किसको...
फिर भी सपने सजाए जाते हैं ;
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बाद मरने के क्या मिलेगा उन्हें...
इस जहाँ को जो मिटाए जाते हैं ;
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उनकी आँखों में प्यार पाने को....
उनसे नज़रें मिलाए जाते हैं ;
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होड़ आगे निकलने की है लगी...
दूसरों को गिराए जाते हैं ;
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ये सुना था कि रोशनी होगी...
घर को तरुणा जलाए जाते हैं...!!
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.................................'तरुणा'....!!!


Wednesday, July 20, 2016

करिश्मा ...!!!


हमेशा वो नहीं मिलता जिसे तू माँग आता है ..
ख़ुदा का ही करिश्मा है यहाँ तू जो भी पाता है ;
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अकड़ के मत चलो धरती पे दिन यूँ भी बदलते हैं....
हुआ करता था जो राजा वो अब दर-दर पे जाता है ;
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बड़े ऊंचे महल थे जो मिले है धूल में पल में...
ये दर्पण वक़्त का भी अक्स कब कैसा बनाता है ;
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बिछाये लाख कांटे वो हमेशा फूल खिलते हैं...
मेरे किरदार से मेरा उदू भी ख़ौफ़ खाता है ;
(उदू-दुश्मन)
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गिरे सब ज़र्द पत्ते पर शज़र फिर से हरा होगा ..
पुराना जाएगा मौसम नया तब ही तो आता है ;
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बुरा हो जब समय 'तरुणा' ज़रा सा सब्र तो रख लो....
यही पहचान तो अपने परायों की कराता है ..!!
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...........................................................'तरुणा'...!!!



Thursday, July 14, 2016

मेरा हमदम...!!!


हमदम मेरा इतना भी तो मग़रूर नहीं है...
झुक जाये मेरा सर उसे मंज़ूर नहीं है ;
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तुम प्यार के बदले न मुझे प्यार दो लेकिन...
नफ़रत भी मगर देने का दस्तूर नहीं है ;
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महसूर मुहब्बत में तो हर पल हूँ मैं उसकी...
वो दूर भी है मुझसे कभी दूर नहीं है ;
(महसूर-घेरे में )
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हाँ इश्क़ में दिन रात मेरा दिल तो जला पर..
दिल पर मेरे छाला तो है नासूर नहीं है ;
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कुछ और मुझे उसके सिवा याद कहाँ अब...
तारी है नशा प्यार का काफ़ूर नहीं है ;
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रुसवाईयां दे दीं हैं मुझे इश्क़ ने कितनी..
अब कौन कहे तरुणातू मशहूर नहीं है..!!
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...................................................'तरुणा'..!!!




Sunday, July 10, 2016

बर्फ़...!!!



रिश्तों पे जमी बर्फ़ गलाने में लगी हूँ ....
ज़ख्मों को अभी फिर से सुखाने में लगी हूँ ;
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तन्हाई के आगोश में कल तक मैं रही थी...
अब भीड़ से मैं हाथ मिलाने में लगी हूँ ;
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मुमकिन न हुआ मुझसे मेरे दिल का सँवरना...
इस वास्ते मैं घर को सजाने में लगी हूँ ;
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दिन रात वो जीवन पे मेरे बोझ बने हैं...
बीते जो तेरे साथ भुलाने में लगी हूँ ;
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इस दौर की बेजान मुहब्बत में वफ़ाएँ...
किस शै पे यकीं ख़ुद को दिलाने में लगी हूँ ;
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पूछे न कोई हाल भी 'तरुणा' का यहाँ अब...
कुछ और हूँ कुछ और दिखाने में लगी हूँ..!!
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......................................................’तरुणा’...!!!




Thursday, July 7, 2016

फिर वही ईद...!!!


फूलों सी ख़ुशबू लेकर मुस्काती ईद
प्यार मुहब्बत के पैग़ाम को लाती ईद ;
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बिखरी ख़ुशबू ऐसी शीर सिवइयों की
बच्चों की मानिंद मुझे ललचाती ईद ;
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कोई बहाना कर दिलबर से मिलने को..
चाँद देखने फिर छत पर आ जाती ईद ;
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मिलजुल कर बांटी जाती थीं ये खुशियाँ..
जाने क्यूँ अब धर्मो में बंट जाती ईद ;
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महंगे तोहफ़े हैं बाज़ार की रौनक़ अब ..
महंगाई से मुफ़लिस को तरसाती ईद ;
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होली क्रिसमस और दीवाली साथ थे तब..
अब हैं तन्हा और तन्हा मन जाती ईद ;
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दौर अनोखा था साँझा त्योहारों का ...
'तरुणा' को लौटा दो वही सुहाती ईद...!!
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............................................'तरुणा'....!!!



Monday, July 4, 2016

एक धोखा..!!!


एक धोखा और मुझको दीजिये मेरे हुज़ूर...
फेंकिये फिर से वो पांसा फेंकिये मेरे हुज़ूर ;
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ज़ख़्म तो सारे हैं सूखे दाग़ भी दिखते नहीं ...
चोट दिल पर इक नई तो कीजिये मेरे हुज़ूर ;
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आप कहते थे नशा आँखों में गहरा है मेरी...
जाम नज़रों का वही पी लीजिये मेरे हुज़ूर ;
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क्यूँ तकल्लुफ़ हो रहा है आपको समझी न मैं...
वो पुराना खेल फिर से खेलिये मेरे हुज़ूर ;
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आप मेरे ज़ब्त की चिंता न कीजे ,छोड़िये...
दिल मेरा बेख़ौफ़ होके चीरिये मेरे हुज़ूर ;
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एक भी छींटा कभी पड़ने न देंगे आप पर...
दाग़ ये बस रूह के धो लीजिये मेरे हुज़ूर ;
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आप हैं मासूम 'तरुणा' जानती तो ख़ूब है...
किस लिए ख़ामोश हैं कुछ बोलिए मेरे हुज़ूर ..!!
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.......................................................'तरुणा'...!!!




Saturday, July 2, 2016

जाने पहचाने लोग...!!!



लोग अनजाने भी मुझको जाने-पहचाने लगे ...
मुस्कुराए इस तरह बरसों के याराने लगे ;
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मदभरी नज़रों से देखा दिल को धड़काने लगे ..
किस तरह वो दिल के वीराने को महकाने लगे ;
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शम्स को क्या दोष दें हम इस कड़कती धूप का..
जब ये सावन के ही बादल आग बरसाने लगे ;
(शम्स-सूरज)
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ज़िंदगी की तल्ख़ियाँ जिनको रुला पाईं न थीं ..
ज़ख़्म सहलाये जो उनके अश्क बरसाने लगे ;
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चारदीवारी में जिनके साथ गुज़री ज़िंदगी...
बाद मुद्दत के अचानक क्यूँ वो अनजाने लगे ;
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ढेर में थी राख के मैं एक चिंगारी दबी.....
साज़िशें कर के हवा से मुझको सुलगाने लगे ;
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पास जिनके मैं गई तरुणामदावे के लिए...
वो ही चारागर मुझे ख़ुद ज़ख़्म दिखलाने लगे...!!
(मदावा-इलाज, चारागर-डॉक्टर)
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.......................................................'तरुणा'...!!!