Thursday, November 1, 2012

चौखट


आज फिर मैं तुम्हारी चौखट
छू कर आई हूँ|
शायद तुम दिख जाओ कहीं
नज़रों को इतमीनान हो जाए|
दिल को फिर तसल्ली दे पाऊँ
कुछ दिन को एतबार जाए|
अगर दिखो तुम तो
शायद कुछ लफ्ज़ तो सुन लूँ मैं
फिर कानों मे मिश्री घुल जाए|
तुम रहते हो अब भी उसी मकां में
जहाँ साथ रहे हम बरसों बरस|
अब देख नही पाती हूँ तुम्हें
निगाहें मेरी जाती है तरस|
बस आस दरस की जिंदा है
मैं खिंची चली ही आती हूँ|
तेरी दहलीज़ पे रुक के मैं
दो पल की जिंदगी पाती हूँ|
पर आज नहीं थे तुम भी वहाँ
होने के थे कोई नामोंनिशाँ|
मैं रुकी रही एक आस लिए
तेरे दर्शन की प्यास लिए|
मायूस वहाँ से लौटी हूँ
अब जीती मरती हूँ|
फिर तेरी चौखट ने ठुकराया है
मेरे होने के सुबूत को मिटाया है|
जब वापस तुम लौट के आओगे
मेरा एक टुकड़ा वहीं पाओगे|
तुम बिन साँसे ले शर्मिंदा हूँ
मैं मुर्दा हूँ जिंदा हूँ|
मैं मुर्दा हूँ जिंदा हूँ||
............................तरुणा||

4 comments:

Mahima Mittal said...

betareeeeeeeeeeeeen....

taruna misra said...

Bahut bahut ....Shukriya ...:))))

Unknown said...

Bahut Khoob...Sundar
Behtareen Abhivyaktti

taruna misra said...

अभिषेक कुमार झा जी .....बहुत बहुत आभारी हूँ मैं आपकी....:)))