आज फिर मैं
तुम्हारी चौखट
छू कर आई
हूँ|
शायद तुम दिख
जाओ कहीं
नज़रों को इतमीनान
हो जाए|
दिल को फिर
तसल्ली दे पाऊँ
कुछ दिन को
एतबार आ जाए|
अगर न दिखो
तुम तो
शायद कुछ लफ्ज़
तो सुन लूँ
मैं
फिर कानों मे मिश्री
घुल जाए|
तुम रहते हो
अब भी उसी
मकां में
जहाँ साथ रहे
हम बरसों बरस|
अब देख नही
पाती हूँ तुम्हें
निगाहें मेरी जाती
है तरस|
बस आस दरस
की जिंदा है
मैं खिंची चली ही
आती हूँ|
तेरी दहलीज़ पे रुक
के मैं
दो पल की
जिंदगी पाती हूँ|
पर आज नहीं
थे तुम भी
वहाँ
होने के न
थे कोई नामोंनिशाँ|
मैं रुकी रही
एक आस लिए
तेरे दर्शन की प्यास
लिए|
मायूस वहाँ से
लौटी हूँ
अब न जीती
न मरती हूँ|
फिर तेरी चौखट
ने ठुकराया है
मेरे होने के
सुबूत को मिटाया
है|
जब वापस तुम
लौट के आओगे
मेरा एक टुकड़ा
वहीं पाओगे|
तुम बिन साँसे
ले शर्मिंदा हूँ
मैं मुर्दा हूँ न
जिंदा हूँ|
मैं मुर्दा हूँ न
जिंदा हूँ||
............................तरुणा||
4 comments:
betareeeeeeeeeeeeen....
Bahut bahut ....Shukriya ...:))))
Bahut Khoob...Sundar
Behtareen Abhivyaktti
अभिषेक कुमार झा जी .....बहुत बहुत आभारी हूँ मैं आपकी....:)))
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