मरते - मरते मैं.......जी उठी हूँ फिर से.......
शायद ग़लती से.....मेरा नाम लिया है उसने|
अपने इस इश्क़ के....अंजाम से वाक़िफ़ थी मैं..
क्यूँ...मेरी डूबती कश्ती को.....थाम लिया उसने|
अब तलक....मुझको शिक़ायत नही थी..उससे कोई
क्यूँ....मेरी क़ब्र पे आ...मुझे बदनाम किया है उसने|
जीते जी..एक आँसू भी न बहाया...कभी मेरे लिए..
फूल रख कर..मेरी मौत को..नाक़ाम किया है उसने|
.............................................................तरुणा||
2 comments:
bahut hi khoob .....
Thankssss.....Mahima..that you liked it...I'll be waiting for your opinion in future as well...take care...:)
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