Wednesday, November 7, 2012

इलाज़

हम तुम हो इतने पास कि
दरमियाँ हवा ना हो,
आए जो कभी मौत भी
तो हम जुदा ना हो|

जन्नत में भी ना जाऊंगी
मैं, बिन तेरे बगैर,
दोजख है वो जन्नत
अगर, तू वहाँ ना हो|

आवाज़ दे कही से तू
खिंची आऊँगी सनम,
तन्हा है वो महफ़िल
जहाँ तेरी सदा ना हो|

मौत तो खैर क्या है
ठुकरा दूं जिंदगी को मैं,
जाऊंगी ना अब कही भी
जो तेरी रज़ा ना हो|

मुमकिन है मेरे दर्द का
बस एक ही इलाज़,
तू पास हो मेरे कोई
दूजी दवा ना हो|
कोई दूजी दवा ना हो||......तरुणा||

4 comments:

Unknown said...

आवाज़ दे कही से तू
खिंची आऊँगी सनम,
तन्हा है वो महफ़िल
जहाँ तेरी सदा ना हो.........बहुत खूब !

taruna misra said...

सुप्रभात,,............कल्पना जी............मैं आपकी बहुत आभारी हूँ...अपनी रचना को पसंद करने के लिए............आशा करती हूँ कि आप भविष्या में भी मेरी रचनाओं को पसंद करेंगी और अपने बहुमूल्य सुझाव देती रहेंगी|.....धन्यवाद...................तरुणा||

Anonymous said...

आवाज़ दे कही से तू
खिंची आऊँगी सनम,
तन्हा है वो महफ़िल
जहाँ तेरी सदा ना हो

क्या बात ! अलग अंदाज़ है जी

taruna misra said...

धन्यवाद सर,......मैं आपकी बहुत आभारी हूँ कि आपको मेरी रचना पसंद आई.....अगर आप अपना नाम बता सकें तो भविष्य में बात-चीत में आसानी होगी.....जहाँ तक मैं 'नव्या' के बारे में जानती हूँ ......ये शायद कोई किताब है......मगर मुझे ज़्यादा जानकारी नही है...अगर और दे पाए तो आभार होगा......आशा है आप भविष्य में भी अपनी राय से अवगत कराते रहेंगे..........अच्छी बुरी दोनो ही....अगर कोई भी कमी लगे तो भी...ताकि मैं उसमे सुधार कर पाऊँ|...........धन्यवाद सर............शुभकामनाओं सहित.........तरुणा मिश्रा...............:)