मैं थी एक...कोरा पन्ना....
न कोई शब्द लिखा था....
न कोई फ़लसफा........
तुम आए ऐसे...चुपके से..
दबे पाँव.....हौले-हौले...
ख़बर भी न हुई कि...कब....क्यूँ....
तुमने मुझमे ऐसा कुछ लिख दिया...
अब बन गई हूँ मैं...एक खूबसूरत ग़ज़ल...
सारी दुनिया चाहती है....गुनगुनाना जिसे..
पर मैं तो सिर्फ़...तुम्हारी नज़्म हूँ...
गुनगुनाओ...लिखो...पढ़ो....या सुनो...
हज़ारों बार......लाखों बार......
रोका किसने है...तुम्हें गुनगुनाने से..
या चाहो तो.....मिटा दो मुझको...
तुम्हारी ही लिखी.....शायरी हूँ मैं...
पर सच बताना कि क्या???
मिटा के भी...मिटा पाओगे मुझको???
मैं तो वो ग़ज़ल हूँ....जिसे तुम....
तन्हाई मे गुनगुनाओगे.....
जीवन भर गुनगुनाओगे....
पर कभी भुला न पाओगे....
..................................तरुणा||
8 comments:
Prtyek stri ek aisi hi nzm bnanaa chati hai .pr vo ek ghazl bn jati hai. jise gugunana har koyee chata hai par uske hrfon ko koyee mahsoos nahi krta.
behtareen kavita... true feelings of a woman
Dheerendra Jii ...jee haan hona to yahi chaaahiye..par ho nahi paata ...bahut shukraguzaar hoon..:)
Mahima ... Khag jaane khag hi ki ...bhaasha ...Autar ki feelings ko aurat hi samajh salti hai...Shukriya ..:))
सुन्दर रचना तरुन जी
हकीक़त ये हैं...के शायरों को ख्वाब नहीं आते...
यह कर्ण और कविता का जन्म है ..
तरुन जी Subh Nigam Here
Lemo Champ... (subh Nigam) ....main jaanti hoon ...kyunki aapne ek din meri post par jo comment kiya tha ...vahi sher ...Blog par bhi tha...Shukriya ...:)))
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