तुम न आये थे तो,
दिल मेरा वीरान था|
हर खुशी,हर उमंगों से
बिल्कुल अनजान था||
पर अब तुमने इस दिल में ,
एक अमिट प्यास जगा दी है|
एक सूनी झील में कोई
हलचल मचा दी है|
क्या मुझे यूँ ही
सूने वन में भटकना होगा?
इस तपते रेगिस्तान में
यूँ ही चलना होगा?
या दीपशिखा बन जलना होगा?
मेरे महबूब एक बार,
सिर्फ़ एक बार
मुझे इन पहेलियों का
हल बतला दो|
इस वन से निकलने का
रास्ता दिखा दो|
इस सूनी झील की
हलचल को मिटा दो|
मुझे मेरा अंजाम
तो बता दो|
या फिर इन प्रश्नों का
उत्तर ही मिटा दो|
रास्ते की धूल हूँ,
धूल में मिला दो|
धूल में मिला दो||
..................तरुणा||
4 comments:
lajawaab.... umdah
Mahima.....lots of thanksss...:)
bahut khoob !!!!!
Kalpanaji.....good evening...thankss.a lot..:)
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