चल रही हूँ भीड़ में.......पर कोई हाथ नही मिलता....
इस तन्हा सफ़र में......किसी का साथ नही मिलता...
दास्तां हर एक गली की....हमको ज़ुबानी याद थी......
अब मुझे अपने ही घर का...नामोनिशाँ नही मिलता..
कल हज़ारों लोग बसते थे.....आस-पास दिल के मेरे......
आज एहसास होने का किसी के..मुझे कोई नही मिलता.
एक उमर जिनके इंतज़ार में....बिता दी मैने अब तलक..
अब मेरी बीमारी में उनको कुछ...वक़्त भी नही मिलता..
बिछड़े है हमसे अब तलक.....अपने पराए हर कोई........
इस खाली मकां में अब मुझे...अपना पता नही मिलता..
सुन कर करोगे आप क्या.....इस दर्द-ए-दिल की दास्ताँ.......
खुशियाँ तो बिछड़ी थी सभी..अब ग़म भी कोई नही मिलता.
अब ग़म भी कोई नही मिलता.......................................
अब गम भी कोई नही मिलता.......................................
...............................................................तरुणा||
2 comments:
marevllous....
Mahima...many-many thankssss...:)
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