Monday, November 19, 2012

अंजाना सफ़र


दिल अंजाने सफ़र में...अब चलने लगा है....
तुम्हारी धड़कनों में कुछ-कुछ..रमने लगा है|

हो जाता है परेशान.....तुम से दूर जाते ही..
अब हर पल राह तुम्हारी...ये तकने लगा है|

तुम ख्वाबों में आते हो..वापस भी चले जाते हो..
तुम बिन करवटें बदलतें हुए....ये जगने लगा है|

जुस्तुजू न थी कोई...चाहतें थी न अब तक....
फिर क्यूँ मिलन की आरज़ू में...खिचनें लगा है|

आए हज़ारों खरीदार....ले के तोहफें अनमोल.....
हुआ क्या है जादू कि बिन मोल बिकने लगा है||

.............................बिन मोल बिकने लगा है||
......................................................तरुणा||

2 comments:

Vandana Ramasingh said...

आए हज़ारों खरीदार....ले के तोहफें अनमोल.....
हुआ क्या है जादू कि बिन मोल बिकने लगा है||


बहुत सुन्दर रचना

एक निवेदन कृपया ब्लोग सेटिंग से शब्द सत्यापन हटा दीजिये टिप्पणी करने वालों को उलझन होती है

taruna misra said...

Vandanaji.....many thankss...for liking my poem....Anjaana safar...I'll do the things you suggested...I hope in future as well ..you 'll give your valuable suggestion....Taruna...:)