पूरी तरह से तुम से दूर मैं, हो न पाई हूँ कभी
कुछ तुममें जिंदा हूँ और कुछ खुद मैं बाकी हूँ|
दिल की किताब को जो पढ़ पाते तो समझतें,
कुछ तुममें मिटी हूँ और कुछ खुद मैं लिखी हूँ|
तुम्हारी मोहब्बत का सूरज अभी तक सिमटा नहीं,
कुछ तुममें रोशन हूँ और कुछ खुद के अँधेरे में हूँ|
स्याह रातों में रोशन है अब भी तेरी यादों के चिराग,
कुछ उनमें जलती हूँ और कुछ बुझी-बुझी सी हूँ|
..........................................................तरुणा||
2 comments:
aap ki ye kavita "Adhoori Zindgi" mjhe meri Zindgi k bahut kareeb lagti mai..jaise mai inko apne sath zinda rakhne ki koshish kar rhi hu bilkul waise he hai aap ki kavita ki feelings...thank you..
Laxmi...jis kisi ki jindgi me koi puraani yaaden hain vo sab log hi is kavita se relate karenge.....puraani yaadon ko bhulna bahut mushkil hota hai....na chod paate hain...na theek se aage badh paate hain....:)
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