Friday, November 30, 2012

ये तन्हाईयां......


मुझे पता है..कि तुम भी...
मेरी तरह ही...जलते होगे....
कभी-कभी रातों को....
मोम बनकर...पिघलते ही होगे..
या फिर सर्द-गर्म...रातों मे अक्सर..
जागते हुए करवटें बदलते ही होगे...

मेरे हमनवां...मेरे हमसफ़र छुपा लो
किसी से भी....तुम दिल की बात 
पर मैं जानती हूँ कि दिल ही दिल मे
कभी यूँ ही तुम भी तड़पते तो होगे...
कभी-कभी कुछ याद करके तन्हाइयों मे अक्सर
आँसू तुम्हारी आँख से.....निकलते ही होंगे...

सुना करते आए थे हम आज तक ये..
शमा ही है जलती वही है पिघलती...
मगर अब तो तुम भी...उसी आँच पर ही
परवाने की तरह.....रोज जलते ही होगे...

खुदा जाने होगा क्या अंजाम अपना...
क्या होगा फ़ैसला इस तकदीर का....
यही सोच कर यूँ अकेले मे अक्सर....
मेरी तरह तुम भी सिसकते तो होगे...
सिसकते तो होगे............
.....................................तरुणा||

Thursday, November 29, 2012

ग़ज़ल.....


मैं थी एक...कोरा पन्ना....
न कोई शब्द लिखा था....
न कोई फ़लसफा........
तुम आए ऐसे...चुपके से..
दबे पाँव.....हौले-हौले...
ख़बर भी न हुई कि...कब....क्यूँ....
तुमने मुझमे ऐसा कुछ लिख दिया...
अब बन गई हूँ मैं...एक खूबसूरत ग़ज़ल...
सारी दुनिया चाहती है....गुनगुनाना जिसे..
पर मैं तो सिर्फ़...तुम्हारी नज़्म हूँ...
गुनगुनाओ...लिखो...पढ़ो....या सुनो...
हज़ारों बार......लाखों बार......
रोका किसने है...तुम्हें गुनगुनाने से..
या चाहो तो.....मिटा दो मुझको...
तुम्हारी ही लिखी.....शायरी हूँ मैं...
पर सच बताना कि क्या???
मिटा के भी...मिटा पाओगे मुझको???
मैं तो वो ग़ज़ल हूँ....जिसे तुम....
तन्हाई मे गुनगुनाओगे.....
जीवन भर गुनगुनाओगे....
पर कभी भुला न पाओगे....
..................................तरुणा||

Tuesday, November 27, 2012

प्यास.....


तुम न आये थे तो,
दिल मेरा वीरान था|
हर खुशी,हर उमंगों से
बिल्कुल अनजान था||
पर अब तुमने इस दिल में ,
एक अमिट प्यास जगा दी है|
एक सूनी झील में कोई 
हलचल मचा दी है|
क्या मुझे यूँ ही
सूने वन में भटकना होगा?
इस तपते रेगिस्तान में
यूँ ही चलना होगा?
या दीपशिखा बन जलना होगा?
मेरे महबूब एक बार,
सिर्फ़ एक बार
मुझे इन पहेलियों का
हल बतला दो|
इस वन से निकलने का
रास्ता दिखा दो|
इस सूनी झील की
हलचल को मिटा दो|
मुझे मेरा अंजाम
तो बता दो|
या फिर इन प्रश्नों का
उत्तर ही मिटा दो|
रास्ते की धूल हूँ,
धूल में मिला दो|
धूल में मिला दो||
..................तरुणा||

Monday, November 26, 2012

नामोनिशाँ


चल रही हूँ भीड़ में.......पर कोई हाथ नही मिलता....
इस तन्हा सफ़र में......किसी का साथ नही मिलता...

दास्तां हर एक गली की....हमको ज़ुबानी याद थी......
अब मुझे अपने ही घर का...नामोनिशाँ नही मिलता..

कल हज़ारों लोग बसते थे.....आस-पास दिल के मेरे......
आज एहसास होने का किसी के..मुझे कोई नही मिलता.

एक उमर जिनके इंतज़ार में....बिता दी मैने अब तलक..
अब मेरी बीमारी में उनको कुछ...वक़्त भी नही मिलता..

बिछड़े है हमसे अब तलक.....अपने पराए हर कोई........
इस खाली मकां में अब मुझे...अपना पता नही मिलता..

सुन कर करोगे आप क्या.....इस दर्द-ए-दिल की दास्ताँ.......
खुशियाँ तो बिछड़ी थी सभी..अब ग़म भी कोई नही मिलता.

अब ग़म भी कोई नही मिलता.......................................
अब गम भी कोई नही मिलता.......................................
...............................................................तरुणा||

Sunday, November 25, 2012

दरवाज़ा....

जिस दिन से तेरी यादों का,
दरवाज़ा बंद किया है मैने|
दिल ने चाहा तो बहुत था,
पर पलट के देखा न मैने|


तुम को जाने की जल्दी थी,
तब मेरी न कोई भी हस्ती थी|
अब वापस मुड़ कर क्या जाना,
जब रास्ता वो छोड़ दिया मैने|

दिन मेरे पिघलते रहतें है,
रातें भी जलती रहती है|
इन तपती-जलती चाहतों का,
एक शोर भी न सुना मैने|

गर कहीं जो तुम मिल जाओगे,
मुझको एक अजनबी सा पाओगे|
जो बीत गयी वो बात गयी,
उस पहचान को मोड़ दिया मैने|
...................................तरुणा||

Friday, November 23, 2012

मेरा नाम......


मरते - मरते मैं.......जी उठी हूँ फिर से.......
शायद ग़लती से.....मेरा नाम लिया है उसने|

अपने इस इश्क़ के....अंजाम से वाक़िफ़ थी मैं..
क्यूँ...मेरी डूबती कश्ती को.....थाम लिया उसने|

अब तलक....मुझको शिक़ायत नही थी..उससे कोई
क्यूँ....मेरी क़ब्र पे आ...मुझे बदनाम किया है उसने|

जीते जी..एक आँसू भी न बहाया...कभी मेरे लिए..
फूल रख कर..मेरी मौत को..नाक़ाम किया है उसने|
.............................................................तरुणा||

Thursday, November 22, 2012

इंतज़ार उनका..........


मन फिर बहक रहा है...
आने का वादा किया है...उन्होने..
और उनके आने के इंतज़ार में...

सारे रास्ते मुस्कुराते रहे....
दरवाज़े खनक-खनक जाते....
धड़कने लगी हैं....सीढ़ियाँ 
हवाएँ ये महकने लगी....
गुनगुनाने लगी हैं....वादियाँ..
रात जगमगाने लगी....
खिलखिलाने लगी हैं...सर्दियाँ....

दीवारें पिघलने सी लगी....
बज उठी हैं..घंटियाँ..
झनकने लगी हैं पायल मेरी....
छनकने लगी हैं चूड़ियाँ......
दमकने लगा है तन मेरा अब..
लपकने लगी हैं बिजलियाँ.....
भीगने लगी हूँ तरबतर मैं....
ख़्यालों की चली हैं पुरवाईयाँ....

रात सरकने लगी है धीरे-धीरे.....
तरसने लगी हैं तनहाईयाँ....
मैं भी चटकने लगी अब....
शोर मचाने लगी हैं सिसकियाँ....
दरवाज़े चौंक-चौंक गये.....
रोने लगी है अब खिड़कियाँ....
बदलने लगा है सारा समा.....
न जाने क्या थी ग़लतियाँ????

आने का वादा किया था उन्होने...
हम इंतज़ार करते रहे...करते रहे....
रात सरकती रही......
और मैं जागती रही.....
जागती रही......रात-रात भर.......
उनके आने के इंतज़ार में.......
................................तरुणा||    

Wednesday, November 21, 2012

चाँद रात...........


चाँद को देख आज फिर...दिल ने है ली अंगड़ाई.....
वो प्रियतम की याद ने..फिर फूलों की सेज सजाई..

बात उस रात की है.....जब हम तुम थे संग-संग
जब प्रेम की चाँदनी से....भीगा था मेरा अंग-अंग
जब आँखों ही आँखों में....बुने थे कुछ सपने....
जब धड़कनों ने गुनगुनाए...थे अनसुने से नग्मे 
जब साँसों की थरथराहट......में डूबने लगे थे...
और होंठों की कपकपाहट.....में मिलकर बहे थे
ना जाने कितनी बातें.....बिन बोले कही थी...
अंजाने सफ़र में मैं....तुम संग चली थी....
प्रिया और प्रियतम.....एक दूजे में खोकर...
लगे बाँधने कुछ......बंधन नये थे........
जब चाँद मुस्कुराया था......और तारे हँसे थे
सुरों से हमारे......नये गीत बज उठे थे...

और आज स्याह रात में..हूँ मैं बिल्कुल अकेली
बस यादें है तुम्हारी....और तन्हाई सहेली....
कमजोर था क्यूँ इतना....वो हमारा जुड़ाव
बहुत पीछे छोड़ आए....हैं हम वो पड़ाव....
वो होंठों के नग्मे.....निशब्द हो गये क्यूँ?
वो रिश्ता..वो बंधन.....अनाम रह गये क्यूँ?
है चाँद आज रात भी.....और तारे हैं चंचल
पर दिल के तार मेरे....क्यूँ गये हैं आज रात जल

अंतर इन दो रातों का....कभी मिट सकेगा क्या?
हमारे प्यार का फिर....दिया जल सकेगा क्या?
है दोनो ही रातें......स्याह और अकेली....
पर एक है अमावस तो....दूजी वधू नवेली
पुकारता है ये दिल....तुम एक बार आओ
अंधेरी रात को मेरी....तुम फिर से सजाओ
इन दोनो का अंतर....तुम फिर से मिटाओ
ना अपनी प्रिया को....तुम इतना सताओ..
ना इतना सताओ........ना इतना सताओ...
.............................................तरुणा||

Tuesday, November 20, 2012

तेरी आवाज़


साँसे जिस्म का साथ...छोड़ने ही वाली थीं... 
रूह मेरी मुझसे जुदा बस होने ही वाली थी..
नज़रों में था बड़ा अज़ीब सा.....सूनापन..
जैसे प्यासा हो कोई...मरुवन.....
युगों-युगों से......जन्मों-जन्मों से...

ऐसे मे ये कैसे हुआ ????
हर निष्प्राण चीज़ में स्पंदन हुआ..
साँसे फिर जिस्म मे समाने लगी..
रूह फिर अपना वजूद पाने लगी...
तपते मरुवन मे...बारिशें हुई झमाझम...
निगाहों का सूनापन..बन गया वृंदावन....

तेरी वो एक..आवाज़..एक आवाज़..ऐसे आई..
कि जैसे नीरव वन मे बज उठी हो शहनाई...
मन-वीणा के झंकृत हो गये तार.....
सारे आलम में बजने लगे सितार....
बस तेरी वो......आवाज़.............

जिसने मेरा नाम पुकारा है......
मेरे डूबते जीवन को उबारा है... 
दौड़ने लगा रगों में...फिर लहू ऐसे..
बस मे अब तक थी मैं...तेरी आवाज़ के जैसे..
वो आवाज़........वो एक आवाज़......बस वो ही आवाज़...
...................................................................तरुणा||

Monday, November 19, 2012

अंजाना सफ़र


दिल अंजाने सफ़र में...अब चलने लगा है....
तुम्हारी धड़कनों में कुछ-कुछ..रमने लगा है|

हो जाता है परेशान.....तुम से दूर जाते ही..
अब हर पल राह तुम्हारी...ये तकने लगा है|

तुम ख्वाबों में आते हो..वापस भी चले जाते हो..
तुम बिन करवटें बदलतें हुए....ये जगने लगा है|

जुस्तुजू न थी कोई...चाहतें थी न अब तक....
फिर क्यूँ मिलन की आरज़ू में...खिचनें लगा है|

आए हज़ारों खरीदार....ले के तोहफें अनमोल.....
हुआ क्या है जादू कि बिन मोल बिकने लगा है||

.............................बिन मोल बिकने लगा है||
......................................................तरुणा||

Sunday, November 18, 2012

अधूरी जिंदगी...........


पूरी तरह से तुम से दूर मैं, हो न पाई हूँ कभी
कुछ तुममें जिंदा हूँ और कुछ खुद मैं बाकी हूँ|

दिल की किताब को जो पढ़ पाते तो समझतें,
कुछ तुममें मिटी हूँ और कुछ खुद मैं लिखी हूँ|

तुम्हारी मोहब्बत का सूरज अभी तक सिमटा नहीं,
कुछ तुममें रोशन हूँ और कुछ खुद के अँधेरे में हूँ|

स्याह रातों में रोशन है अब भी तेरी यादों के चिराग,
कुछ उनमें जलती हूँ और कुछ बुझी-बुझी सी हूँ|

..........................................................तरुणा||

Saturday, November 17, 2012

ठहर जाती मैं....


अब शिकायत है तुम्हें...मुझसे गिला क्यूँ कर है?
आवाज़ दे के पुकार लेते मुझे...तो ठहर जाती मैं|

मैं तुम्हारी ही थी...दिलों जाँ से..रूह की हद तक,
मेरे वजूद को अपना लेते........तो ठहर जाती मैं|

जब तलक साथ थे..नज़र भर के भी न देखा तुमने,
आँसू एक बिछड़ने पे गिरा देते....तो ठहर जाती मैं|

कद्र एक हमने ही इस दुनिया में...पहचानी थी तेरी,
मेरी खामोशियों को जो सुन लेते..तो ठहर जाती मैं|


दिल के टुकड़े-टुकड़े किए......मुझको बिखेरा तुमने,
समेट निगाहों से भी जो देते......तो ठहर जाती मैं|

तुम बहुत देर से लौटे हो....लेने हमारी खोजोखबर,
मरते वक़्त हाथ पकड़ लेते........तो ठहर जाती मैं||
..........................................तो ठहर जाती मैं||

........................................................तरुणा||

Friday, November 16, 2012

क्या यही प्यार है?


आज अचानक उनका वो प्रश्न......
दिल को कहीं झकझोर गया|
किस सादगी से पूछा था उन्होने
मुझे अंदर तक झिझोड़ गया||

तुम अब तक मिली मुझसे हो
फिर प्यार क्यूँ इतना करती हो?
चेहरा देखोगी रूबरू जब तुम..
क्या पसंद करोगी इतना ही......
मैं तब भी तेरे दिल के आँगन में
क्या टहल करूँगा ऐसे ही??

मैं कैसे कहूँ...मैं कैसे लिखूं
मैं देखूँ तुम्हें या देखूँ...
जानती हूँ मैं फिर भी तुम्हें
कुछ चेहरे ऐसे होते हैं
जिन्हें पहचान की ज़रूरत नही
हम मिलें तुम्हें कभी या मिलें
उस एक मुलाक़ात की भी ज़रूरत नही
हर पल..हर घड़ी..हर वक़्त..हर रोज़
मैं तो तुमसे मिलती ही हूँ......

क्या हुआ जो जिस्म सुंदर हो
मुझे ऐसी खूबसूरती की चाह नही
जानती हूँ मैं बस एक बात यही
गर तन सुंदर मन बेनूर हो तो
वो महबूब मेरा हो सकता नही...
जिस तन में तुमसा मन रोशन हो
वो जिस्म अंधेरा हो सकता नही.......
वो जिस्म..............हो सकता नही...
........................................तरुणा||

Monday, November 12, 2012

दीपावली


आओ इस बार......
कुछ इस तरह से दीपावली को मनाए|
कम से कम कुछ दिलों मे तो दिए जलाए||
लाखों के पटाखें अब तक फोड़ दिए हैं हमने
किसी झोपड़ी मे इस बार कुछ पटाखें दे आए|
आओ इस बार...................
नही है जगह अलमारियों में कपड़े रखने को
इस बार किसी ग़रीब के तन ही को ढक जाए|
आओ इस बार....................
बिजलियों से रोशन हैं हमारे घरों की दरोंदीवारें
किसी लाचार की जिंदगी को तो रोशन कर जाए|
आओ इस बार......................
लाखों तड़प के मरते हैं सड़कों-हस्पतालों में हररोज़  
काश.......हम किसी एक की जिंदगी तो बचा पाए|
आओ इस बार..........................
गुनाह तो कर चुके है इतने हिसाब है न कोई
अब जीते जी कोई एक, सबाब तो कर पाए|
आओ इस बार.............................
खुदा ने दी हैं हज़ारों नेमते तो बने न खुद,खुदा
कम से कम एक इंसान की जिंदगी तो जी पाए||
आओ....इस बार कुछ इस तरह दीपावली मनाए||
आओ इस बार...........................
.................................................तरुणा||

Saturday, November 10, 2012

स्पर्श


उफफफफ्फ़..........
ये कौन किसका हाथ है?
नींद से चौंक उठ बैठी हूँ मैं 
कोई भी नही है पास मेरे
फिर भी है ये कैसा एहसास
किसका स्पर्श है ये जिसने
मेरे जिस्मोजां में स्पंदन किया है
जिसकी छुअन से दौड़ती है रग-रग में बिजली
मीठा-मीठा जहर सा बहता है जिस्म में
है बहुत दूर, बहुत दूर...
वो अजनबी मुझसे..........
फिर क्यूँ उसकी धड़कन कानों में गूँजती है 
सरसराती हुई आती है उसकी आवाज़ 
ये मेरा नाम फिर क्यूँ है पुकारा,उसने
जब से आया है मेरी बेरंग जिंदगी में
एक घड़ी चैन से मैं न कभी सोई हूँ
रात-रात भर तड़पाती है उसकी वो छुअन
जो बहुत दूर से उसने मुझे पहुँचाई है
आए हुए कुछ दिन ही हुए है उसको
क्यूँ लगता है कि युगों से जानती हूँ मैं
और वो हाथ बढ़ाकर अक़सर 
क्यूँ मेरी रातों को तपाया करता है?
मैं अब फिर से सो नहीं पाऊँगी
कई रातों से जागी हूँ मैं ,बता दो उसको
यूँ मेरी नींद में आके जगाया न करे
क्यूँ मेरी रातों को तनहा, वो कर देता है
आना है तो फिर आ जाए, हमेशा के लिए 
जिंदगी भर जागूंगी मैं , फिर उसके लिए|
सिर्फ़ उसके लिए..............................
...................................................तरुणा||
   

Friday, November 9, 2012

पुकार


आज हर तरफ़ इतना सन्नाटा क्यूँ है?
क्या धड़कनों ने मेरी तुमको पुकारा नही है|
ये मत कहना कि व्यस्त हूँ दुनिया के झमेलों में
क्या आज मेरी ओर कोई भी नज़ारा नही है|
क्या मेरी बातों ने तुझको संवारा नही है||

क्यूँ आलम में है आज अजब सी तनहाई
क्या दिल को तेरे,एक याद भी न आई|
दूर हो जाओ जहाँ के हर एक मेले से
मेरी मोहब्बत ने ली है फिर अंगड़ाई|
क्या सांसो ने मेरी तुम्हें आवाज़ न लगाई||

यूँ तो रहते है दिन भर आप चुपचाप
ख़्याल ही बस मेरे,करते है तुमसे बात|
पिसती हूँ हर बार मैं ही तो,इस रेले में
अब न जाने क्यूँ न बरदाश्त है ये रुसवाई|
क्या मेरे दिल को छूना तुझे गवारा नही है|

या मेरी रूह ने अब भी तुझे पुकारा नही है||
.......................................................तरुणा||

Thursday, November 8, 2012

मौत


उस एक रात में कई बार मरी हूँ मैं|

सन्नाटा फ़ैला था चारो ओर तुम्हारे न होने से
पूरे आलम में एक अज़ब सी बेचैनी थी
मुझको जमाने की निगाहों से बचाया था क्यूँ
मेरे वजूद पर छाई थी  बदहवासी सी 
अब जैसे दुनयावी आँखों की किरकिरी हूँ मैं|
उस एक रात में कई बार मरी हूँ मैं||

हम तो पहले ही अकेले थे न शिकवा था कोई
तुमने इन बुझते चरागों में रोशनी क्यूँ की?
तोड़ के जाना ही था जब मेरे ख़्वाबों का महल
दरोदीवार में रोगन की चाँदनी क्यूँ की???
इस अहसास से बार-बार मरी हूँ मैं|
उस एक रात कई बार मरी हूँ मैं||

मेरी ख़ामोशियों में क्यूँ आवाज़ें भर दीं
टूटे नगमों को फिर साज़ पे गाया था क्यूँ?
मेरे पन्नों की तो उड़ती थी फटी सी चिंदीयां   
उसे गुलदान में दिल के सज़ाया था क्यूँ?
टूटे किरचों में गुलदान के वहीं बिखरी हूँ मैं|
उस एक रात में कई बार मरी हूँ मैं||  
......................................................तरुणा||

Wednesday, November 7, 2012

इलाज़

हम तुम हो इतने पास कि
दरमियाँ हवा ना हो,
आए जो कभी मौत भी
तो हम जुदा ना हो|

जन्नत में भी ना जाऊंगी
मैं, बिन तेरे बगैर,
दोजख है वो जन्नत
अगर, तू वहाँ ना हो|

आवाज़ दे कही से तू
खिंची आऊँगी सनम,
तन्हा है वो महफ़िल
जहाँ तेरी सदा ना हो|

मौत तो खैर क्या है
ठुकरा दूं जिंदगी को मैं,
जाऊंगी ना अब कही भी
जो तेरी रज़ा ना हो|

मुमकिन है मेरे दर्द का
बस एक ही इलाज़,
तू पास हो मेरे कोई
दूजी दवा ना हो|
कोई दूजी दवा ना हो||......तरुणा||

नसीब


तुम जो होते मेरी दुनिया में, बहुत पास मेरे,

सारे गुलशन के रंगीं फूलों से, सज़ा कर रखती|


कहीं लग न जायें नज़र कभी , इनकी तुमको,


इस जहाँ के हर हसीं नज़ारों से, छुपा कर रखती|


देख कर रश्क हो न जायें कही, किस्मत को,


अपनी इन कजरारी आँखों में ,बसा कर रखती|



डरती हूँ, तुम मेरे नसीब में हो, या कि नही,



तुम को इस दिल में,खुदा से भी, बचा कर रखती|



............................................................तरुणा||

Tuesday, November 6, 2012

जिंदगी


तेरी आँखो से अब सपनें नशीलें देखती हूँ मैं
तेरी राहों पे क़दम बढ़ा के साथ चलती हूँ मैं
................................जिंदगी जीती हूँ मैं|

सारे मेरे दुखों को बस, छीन लिया है तुमने
अपनी हँसी से जहाँ को रोशन किया है तुमने
तेरे रंगो मैं रंग कर अब रोज़ ही बहती हूँ मैं|
.................................जिंदगी जीती हूँ मैं|

मुझे तुम से तो था मिलना, एक न एक दिन
पतझड़ था मेरा जीवन बहार बनना था एक दिन
तेरे गीतों की मय को गुनगुना कर पीती हूँ मैं|
....................................जिंदगी जीती हूँ मैं|

अब कुछ भी कोई करले ,जुदा न होंगे कभी
अब तू है मेरी मंज़िल, भटकेंगे न हम कभी
तेरा हाथ,हाथ में है,किसी से न डरती हूँ मैं|
...............................जिंदगी जीती हूँ मैं||

..................................................तरुणा||

Monday, November 5, 2012

लफ्ज़


यूँ तो कहने सुनने को आवाज़ें बहुत हैं 

मेरे दिल के आस-पास बरसातें बहुत हैं,

पर दिल है कि एक उसी को ढूंढता है

तेरी राहों में फूल बिछा देंगे,जो कहता हैं|

कैसे समझाऊं उस दीवाने को

अपने उस अनोखे परवाने को,

जिंदगी फूलों की सेज नही,काँटों का बिस्तर है

हर क़दम यहाँ पाँवों मे चुभते नश्तर हैं|

कही ऐसा न हो तेरे ख़्वाबो में बिखर जाऊँ

तुझे पाने की ख़्वाहिश में खुद को तिनका-तिनका खो डालूं|

फिर भी तेरे प्यार में भीगे लफ्ज़ पीछा करते हैं

मेरी तनहाइयों में हर पल हँसते हैं||

.........................................................तरुणा|| 

Sunday, November 4, 2012

सुकून



मुद्दतो बाद जो लौटोंगे वो ,तो कयामत होगी|
सारी कायनात को भी फिर,मुझसे शिकायत होगी||


कोई तस्वीर नही है दिल में, न है चाहत बाकी
बस उनको ही दिल में सजाएँगे,तो इबादत होगी|


बड़े हसीन है वो जो , दिल में मेरे बसते है,

देख लें गर तो फ़िज़ाओं में भी, नफ़ासत होगी|


आँखों-आँखो में ही हम कर लेंगे दीदार उनका,
और बाहों में भी भर लेंगे ,जो इजाज़त होगी|


ज़िक्र करता था न मेरा कोई,बस एक उनके सिवा
वो जो मुझे प्यार से देखेंगे, तो शोहरत होगी|


जो सुकून है उनके पहलू में, नही और कही,
अब तो वो क़त्ल भी कर देंगे,न शिकायत होगी|

..........................................न शिकायत होगी||
.......................................................तरुणा||

Saturday, November 3, 2012

चाहत


न देखूँगी किसी को अब,तुम्हें देखने के बाद
न बोलूँगी किसी से, तुम्हें सुनने के बाद|

न छुऊँगी किसी को, तुम्हें छूने के बाद
न पहनूँगी कुछ और,तुम्हें ओढ़ने के बाद|

न समझूंगी कुछ फिर, तुम्हें समझने के बाद
न उलझूंगी किसी से, तुम्हें सुलझाने के बाद|

न सोचूँगी कुछ और, तुम्हें सोचने के बाद
न भूलूंगी कभी भी,तुम्हें याद करने के बाद|

न मागूंगी अब कुछ भी, तुम्हें पाने के बाद
न चाहूँगी अब किसी को,तुम्हें चाहने के बाद||
.....................................................तरुणा|| 

Friday, November 2, 2012

बुलंदी

तेरे पहलू  मे दो पल की जिंदगी है बहुत,

एक पल की हँसी,एक पल की खुशी है बहुत|

मुझे दुनिया चाहे पहचाने या ना पहचाने,

तेरे  जेहन मे  मेरी  मौजूदगी  है बहुत|

दुनयावी साज़ों की परवाह नही है मुझे,

तेरी लरजती सांसो की  मौसीक़ी है बहुत|

मुझे आसमाँ की ऊँचाइयां चाहे भले ना मिले,

तेरी  निगाहों मे उठी ये  बुलंदी है बहुत||

..............................................तरुणा||

Thursday, November 1, 2012

चौखट


आज फिर मैं तुम्हारी चौखट
छू कर आई हूँ|
शायद तुम दिख जाओ कहीं
नज़रों को इतमीनान हो जाए|
दिल को फिर तसल्ली दे पाऊँ
कुछ दिन को एतबार जाए|
अगर दिखो तुम तो
शायद कुछ लफ्ज़ तो सुन लूँ मैं
फिर कानों मे मिश्री घुल जाए|
तुम रहते हो अब भी उसी मकां में
जहाँ साथ रहे हम बरसों बरस|
अब देख नही पाती हूँ तुम्हें
निगाहें मेरी जाती है तरस|
बस आस दरस की जिंदा है
मैं खिंची चली ही आती हूँ|
तेरी दहलीज़ पे रुक के मैं
दो पल की जिंदगी पाती हूँ|
पर आज नहीं थे तुम भी वहाँ
होने के थे कोई नामोंनिशाँ|
मैं रुकी रही एक आस लिए
तेरे दर्शन की प्यास लिए|
मायूस वहाँ से लौटी हूँ
अब जीती मरती हूँ|
फिर तेरी चौखट ने ठुकराया है
मेरे होने के सुबूत को मिटाया है|
जब वापस तुम लौट के आओगे
मेरा एक टुकड़ा वहीं पाओगे|
तुम बिन साँसे ले शर्मिंदा हूँ
मैं मुर्दा हूँ जिंदा हूँ|
मैं मुर्दा हूँ जिंदा हूँ||
............................तरुणा||

बग़ावत




सुबह सवेरे से,शोरोगुल के बीच
दौड़ते भागते,हाँफते-हाँफते
बिताती हूँ जिंदगी को|
दुनियावी कामों मे व्यस्त होने
का दिखावा करके कहीं,
छुपाती हूँ अपने ख़ालीपन को|
बहुत कोशिशें की तुझे याद न करूँ,
अब जिंदगी को दुबारा बर्बाद न करूँ|
चलूं किसी और रास्ते पर,
तेरी चाहतों से दूर जा निकलूं|
तेरे दिए हुए ज़ख़्मों को,
जहाँ के तनावों में ढक लूँ|
लेकिन तेरी यादों ने मुझसे
अदावत कर ली|
मेरे ख्यालों ने फिर मुझसे
बग़ावत कर दी|
...........................
बग़ावत कर दी||
..................तरुणा||