Friday, August 1, 2014

झूठी रवायत... !!!



लुत्फ़ कि बात पे ...  बेवजह शिक़ायत न करो...
तोड़ दो दिल को अब .. ये झूठी रवायत न करो ;

मैं तो कितनी दफ़ा आई हूँ ... मुहब्बत में तेरी...
तुममे गर दम नहीं है ये ... तो बग़ावत न करो ;

रूह जलती है और ये ज़िस्म ...  राख़ होता है ....
आग का दरिया है छोड़ो... ये मुहब्बत न करो ;

तुमने की दुश्मनी भी  ... आड़-ए-दोस्ती लेकर...
रहने दो होगी न तुमसे ... ये अदावत न करो ;

यूँ तो करते हैं परस्तिश भी ... लोग पत्थर की...
किसी इंसां की 'तरु' इतनी ... इबादत न करो... !!

....................................................................'तरुणा'...!!!


Lutf ki baat pe ... bewajah shiqayat na karo ...
Tod do dil ko ab ye... jhoothi rawayat na karo ;

Main to kitni dafa aayi hoon ... muhabbat me teri..
Tum'me gar dam nahi hai ye .. to bagawat na karo ;

Rooh jalti hai aur ye zism ..... raakh hota hai ....
Aag ka dariya hai chhodo .. ye muhabbat na karo ;

Tumne ki dushmani bhi .... aad-e-dosti lekar...
Rahne do hogi na tumse .. ye adawat na karo ;

Yun to karte hain parstish bhi ... log patthar ki...
Kisi insaan ki 'Taru' itni ..... ibadat na karo .. !!


...............................................................................'Taruna'...!!!

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