लुत्फ़ कि बात पे ... बेवजह शिक़ायत न करो...
तोड़ दो दिल को अब .. ये झूठी रवायत न करो ;
मैं तो कितनी दफ़ा आई हूँ ... मुहब्बत में तेरी...
तुममे गर दम नहीं है ये ... तो बग़ावत न करो ;
रूह जलती है और ये ज़िस्म ... राख़ होता है ....
आग का दरिया है छोड़ो... ये मुहब्बत न करो ;
तुमने की दुश्मनी भी ... आड़-ए-दोस्ती लेकर...
रहने दो होगी न तुमसे ... ये अदावत न करो ;
यूँ तो करते हैं परस्तिश भी ... लोग पत्थर की...
किसी इंसां की 'तरु' इतनी ... इबादत न करो... !!
....................................................................'तरुणा'...!!!
Lutf ki baat pe ... bewajah shiqayat na karo ...
Tod do dil ko ab ye... jhoothi rawayat na karo ;
Main to kitni dafa aayi hoon ... muhabbat me teri..
Tum'me gar dam nahi hai ye .. to bagawat na karo ;
Rooh jalti hai aur ye zism ..... raakh hota hai ....
Aag ka dariya hai chhodo .. ye muhabbat na karo ;
Tumne ki dushmani bhi .... aad-e-dosti lekar...
Rahne do hogi na tumse .. ye adawat na karo ;
Yun to karte hain parstish bhi ... log patthar ki...
Kisi insaan ki 'Taru' itni ..... ibadat na karo .. !!
...............................................................................'Taruna'...!!!
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