इश्क़ की दुनिया के किस्से हैं अज़ब ...यहाँ राजदारी बहुत है....
वो छिपे रहतें हैं चिलमनों में हमेशा ..उनमें पर्दादारी बहुत है ;
कौन ज़माने में करता है वफ़ा ... अब किसी के भी साथ....
ठुकराते हैं मतलब निकलतें ही .. सबमें समझदारी बहुत है ;
ग़ैर पूछ्तें ही नहीं अब...... अपने भी न देखें हैं मुझे ...
वो कभी कर लेतें हैं सवाल...उनकी जवाबदारी बहुत है ;
हम ज़माने में रहते रहे ... न सीखा चलन इस दुनिया का....
लोग पैर रख निकलतें गए ... उनमें दुनियादारी बहुत है ;
दुनिया बढ़ गई आगे बहुत ... लोग भी नासमझ नहीं है अब....
परायों को तो छोडिए ... जी दुखाने को रिश्तेदारी बहुत है ;
नहीं देतें हैं मोहब्बत का सिला ...गम नहीं है 'तरु' को कोई...
नाराजगी जता देतें हैं कभी जो ...ये हक़दारी बहुत है...!!
......................................................................'तरुणा'......!!!
Ishq ki duniya ke kissey hain azab ... yahan raazdaari bahut hai...
Vo chhipe rahtey hain chilmano me hamesha.. unme pardadaari bahut hai ;
Kaun zamaaney me karta hai wafa .. ab kisi ke bhi saath...
Thukraatey hain matlab nikaltey hi ... sabme samajhdaari bahut hai ;
Gair poochhtey hi nahi ab ... apne bhi na dekhey hain mujhe ...
Vo kabhi kar letey hain sawaal ....unki jawaabdaari bahut hai ;
Ham zamaane me rahtey rahe ... na seekha chalan is duniya ka...
Log pair rakh nikaltey gaye ... unme duniyadaari bahut hai ;
Duniya badh gayi aagey bahut ... log bhi nasamajh nahi hain ab....
Paraayon ko to chhodiye .. ji dukhaney ko rishteydaari bahut hai ;
Nahi detey hain mohabbat ka sila ...gam nahi hai 'Taru' ko koi...
Naraazgi jata detey hain kabhi jo... ye haqdaari bahut hai....!!
..................................................................................'Taruna'.......!!!
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