कभी समंदर को इक बूंद में....सिमटता देखूं.....
एक दिए को बादे तुंद में.....भी जलता देखूं....
(बादे तुंद-तेज़ हवाएं)
प्यासा तो भटकता ही है...पानी के लिए अमूमन...
सिर्फ़ इक रोज़ पानी को...प्यासे पे तड़पता देखूं...
वो ढूंढता फिरे मुझको...कहीं छुप जाऊं मैं ऐसे....
कभी दिल के दश्त में..उसको भटकता देखूं....
(दश्त-जंगल)
नदी तो तोड़ देती है सरहद भी...किनारों के लिए...
कभी किनारों को भी तो...नदी में सिमटता देखूं....
मुझपे इलज़ाम वो लगाए...इन्हितात की हद तक...
'तरु' कभी उनको अपनी...मोहब्बत में उठता देखूं...
(इन्हितात-पतन)
..........................................................'तरुणा'....!!!
Kabhi samandar ko ek boond me...simat'ta dekhoon...
Ek Diye ko baade - tund me...bhi jalta dekhoon.....
(baade - tund---fast wind)
Pyaasa to bhatakta hi hai...paani ke liye amooman...
Sirf ek roz paani ko.....pyaase pe tadapta dekhoon...
Vo dhoodhta firey mujhko...kahin chhup jaaun main aise...
Kabhi dil ke dasht me...... usko bhatakta dekhoon.....
(dasht-forest)
Nadi to tod deti hai sarhad bhi..... kinaaron ke liye....
Kabhi kinaaron ko bhi to...nadi me simat'ta dekhoon...
Mujhpe ilzaam vo lagaaye...... inhitaat ki had tak.....
'Taru' kabhi unko apni....mohabbat me uthta dekhoon...
(Inhitaat- fall in grace)
...........................................................................'Taruna'......!!!
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