रेज़ा रेज़ा छलकी हूँ मैं .... टुकड़ा टुकड़ा बिखरी हूँ....
धज्जी धज्जी हो गई हूँ मैं .. रेशा रेशा चिटकी हूँ ;
उसने तो था मुझको तराशा.... टुकड़ों में से कांच के...
जाते ही अब उसके क्यूँ मैं.. अँधेरो में फिर सिमटी हूँ ;
क़ाबू न था जब अपने पे .. महफ़िल में क्यूँ गई थी मैं...
रुसवाई होने से पहले ....... कितना ही तो भटकी हूँ ;
मर मर के मैं जियूं अब तो ... यही सज़ा है अब मेरी...
रहबर छोड़ गया है मुझको... उस राह में अब भी अटकी हूँ ;
था अमृत जब पास में मेरे .. किया न उसका मोल कभी..
कैसे बताऊं किस मुश्किल से... ज़हर दवा सा गटकी हूँ...!!
.........................................................................'तरुणा'...!!!
Reza reza chhalki hoon main .... tukda tukda bikhri hoon...
Dhajji dhajji ho gayi hoon main .... resha resha chitki hoon ;
Usne to tha mujhko tarasha .... tukdon me se kaanch ke...
Jaate hi ab uske kyun main ... andheron me phir simati hoon ;
Qaaboo na tha jab apne pe .. mehfil me kyun gayi thi main..
Ruswaayi hone se pahle ....... kitna hi to bhatki hoon ;
Mar mar ke main jiyun ab to ....... yahi saza hai ab meri ...
Rahbar chhod gaya hai mujhko... us raah me ab bhi ataki hoon ;
Tha amrit jab paas me mere ..... kiya na uska mol kabhi....
Kaise bataun kis mushqil se ... zehar dawa sa gatki hoon... !!
...............................................................................................'Taruna'... !!!
No comments:
Post a Comment