ज़िंदगी के हर आयाम पर .. ज़ज्बे कितने मचल गए....
कुछ ख्व़ाब टूटे थे मगर ... कुछ नए भी तो खिल गए ;
जो गुल खिले थे शाख़ पर .... सराहा उन्हें सभी ने है...
जो गुल ज़मीं पर गिर पड़े ..... पैरों तले कुचल गए ;
इस राहे-ज़िंदगी में कितने .. मोड़ तो आए मगर...
साथ छूटा है पुराना तो ... नए अहबाब भी मिल गए ;
(अहबाब-मित्र)
तब ग़ैरों की हथकड़ियां थीं.... अब बेड़ियां अपनों की हैं...
आज़ाद हम हुए नहीं .... बस चेहरे हैं बदल गए ;
नफरत की आँधियों में तो... कोई दम मुझे दिखता नहीं...
जबसे मुहब्बत के चराग़... हज़ारों इस दिल में जल गए ;
कोई साथ दे के.. न दे 'तरु' .... रोते रहें .. क्यूँ रोना यही...
मंसूबे हैं सबके जुदा जुदा ... क्या शिकवा जो बदल गए ....!!
...............................................................................'तरुणा'...!!!
Zindgi ke har aayaam par ..... zazbe kitne machal gaye...
Kuchh khwaab tute the magar .. kuchh naye bhi to khil gaye ;
Jo gul khile the shaakh par.... saraha unhe sabhi ne hai ....
Jo gul zameen par gir pade .... pairon tale kuchal gaye ;
Is raahe-zindgi me kitne ...... mod to aaye magar...
Saath chhuta hai purana to .... naye ehbaab bhi mil gaye ;
(ehbaab-friend)
Tab gairon ki hathkadiyaan thi.... ab bediyaan apno ki hain..
Aazaad ham huye nahi ..... bas chehre hain badal gaye ;
Nafrat ki aandhiyon me to .... koi dam nahi dikhta mujhe....
Jabse muhabbat ke charaag ... hazaron is dil me jal gaye ;
Koi saath de ke ... na de 'Taru' ... rote rahein .. kyu rona yahi..
Mansoobe hain sabke juda juda .. kya shiqwa jo badal gaye ..!!
.............................................................................................'Taruna'..!!!
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