Tuesday, July 8, 2014

यही है ज़िंदगी... ?

















क्या तूने कभी जाना ... मुश्किल है गम छुपाना...
सेहरा के बीच जैसे .... बारिश में भीग जाना ;

ज़िन्दा रहोगे तुम भी ... ज़िन्दा रहेंगे हम भी....
है ज़िंदगी यही क्या ... या है यही मर जाना ;

महफ़िल मेरी सजती थी ... इक तेरे ही आने से...
बस याद रह गई है ...... गुज़रा है वो ज़माना ;

कभी आया न मुझे भी .. कोई काम दूसरा सा...
तेरे प्यार ने सिखाया ... मुझे हद से गुज़र जाना ;

कभी करवटें लेतीं हैं ... कभी चौक के उठती है...
है चैन नहीं पल भर .... तेरी याद़ों को क्यूँ जानां ;

शिकवा करे क्यूँ तुझसे  .. किससे गिला करे अब... 
चुना है  'तरु' ने  ख़ुद ही ... इस दरिया में बह जाना ..!!

...................................................................'तरुणा'... !!!


Kya tune kabhi jana ... mushqil hai gam chhupana...
Sehra ke beech jaise .... baarish me bheeg jana ;

Zinda rahoge tum bhi .... zinda rahengein ham bhi ...
Hai zindgi yahi kya ......... ya hai yahi mar jana ;

Mehfil meri sajti thi .... ik tere hi aane se ...
Bas yaad rah gayi hai .. guzra hai wo zamana ;

Kabi aaya na mujhe bhi .... koi kaam dusra sa ..
Tere pyaar ne  sikhaya  .. mujhe had se guzar jana ;

Kabhi karvatein leti hain ... kabhi chauk ke uthti hain...
Hai chain nahi pal bhar .... teri yaadon ko kyun jana ;

Shiqwa kare kyun tujhse ... kissey gila karein ab ...
Chuna hai 'Taru' ne khud hi ... is dariya me beh jana ...!!

.........................................................................................'Taruna'... !!!

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