पुरनूर सुबह ले
कर....मुस्काती हैं ये ईद...
पैग़ाम मोहब्बत
का...फैलाती है ये ईद...
सेवइयां मीठी
सी.... और शीर की वो खुश्बू....
बचपन की तरह अब
भी...ललचाती है ये ईद..
दीदार हो दिलबर
का...या आरज़ू मिलने की....
छत चाँद के बहाने
से ... आ जाती है ये ईद...
गलियों में महकती
थी..घर-घर में चहकती थी..
अब सत्ता के दर
पर ... रह जाती है ये ईद...
तोहफ़े तो बन गए
हैं... बाज़ार की रौनक अब...
महंगाई में
मुफ़लिस को... तरसाती है ये ईद...
वो दौर भी देखा
है... सांझे थे सब त्यौहार...
दौहराव उसी को
फ़िर...सिखलाती है ये ईद...
...........................................................'तरुणा'...!!!
Purnoor subah le kar...muskaati hai ye
Eid...
Paigaam Mohabbat ka... failaati hai ye
Id....
Sevaiya mithi si ... aur Sheer ki vo
khushboo...
Bachpan ki tarah ab bhi.. lalchaati hai ye
Eid...
Deedaar ho dilbar ka...ya aarzoo milne
ki...
Chhat chaand ke bahaane... aa jaati hai ye
Eid..
Galiyon me mahakti thi..ghar-ghar me
chahkti thi...
Ab satta ke dar par .... rah jaati hai ye Eid....
Tauhfe to ban gaye hain...baazaar ki raunaq
ab...
Menhgaayi me muflis ko.. tarsaati hai ye Eid...
Vo daur bhi dekha hai... saanjhe the sab
tyauhaar..
Dauhraav usee ko phir.. sikhlaati hai ye
Eid....
......................................................................'Taruna'..
!!!
No comments:
Post a Comment