दिन भर रंगों में .. रही तरबतर मैं....
मन फ़िर भी न जाने ... क्यूँ भीग न पाया..
यूँ तो सतरंगी हो गया .. था ज़िस्म मेरा..
मन कोरा ही रहा ... कोई रंग चढ़ न पाया ;
किसी झूठे रंगों की.... है ज़रुरत नहीं मुझको...
उसकी इक नज़र ने ही .. मेरा दिल है धड़काया..
है दूर बहुत वो मुझसे ... फ़िर भी पास खड़ा है..
न जाने कैसा उसने ... है ये रंग छलकाया ;
कोई नशा न चढ़े है ... अब मुझ पर...
उसके वज़ूद का ही है ... बस ज़ादू छाया..
इंद्रधनुषी रंग भी फ़ीके ... पड़े उसके आगे...
हर होली पर है साथ .. बस वो इक सरमाया...!!
.................................................'तरुणा'....!!!
Din Bhar Rango Me ... rahi Tarbatar main...
Man Phir Bhi Jaane ... Kyun Bheeg Na Paaya
Yun To Satrangee Ho Gaya ... Tha Zism Mera..
Man Kora Hi Raha ... Koi Rang Chadh Na Paaya ;
Kisi jhoote rango ki ... hai zaroorat nahi mujhko ...
Uski ik nazar ne hi ... mera dil hai dhadkaya...
Hai dur bahut vo mujhse .. phir bhi paas khada hai..
Na jaane kaisa usne ... hai ye rang chhalkaya ;
Koi nasha na chadhe hai ... ab mujh par ..
Uske wajood ka hi hai ... bas Jadoo chhaya..
Indradhanushi rang bhi feeke .. pade uske aage...
Har Holi par hai saath .. bas vo ik sarmaya .. !!
............................................................'Taruna'.....!!!
2 comments:
बहुत खूब
बहुत धन्यवाद... विनोद जी.. :)
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