आग़ाज़ ये जब है अब मेरा ... अंज़ाम की परवाह कौन करे ...
इश्क़ में डूबी हूँ जबसे मैं ...... दुनिया को तबाह कौन करे ;
प्यारे हैं दर्द सभी मुझको ..... ज़ख्म लगे सब अपने से...
चोटें मुझको चुभती है नहीं .. तो उन पर कराह कौन करे ;
अल्लाह की मुझपे इनायत है ... दर से न जाए कोई खाली ...
मंदिर जैसा मन पावन है ..... तो राहे-दरगाह कौन करे ;
सब लगते मुझे अपने जैसे .... नहीं अदू कोई अब मेरा है...
हर राह सजी है फूलों से .... मुझको गुमराह कौन करे ;
(अदू-दुश्मन)
है नूरे-ख़ुदा मुझको हासिल .... ज़ादू इश्क़ का चढ़ा मुझपे...
दिल में हैं प्यार की बरसातें ... नफ़रत का गुनाह कौन करे ;
हर बात मुहब्बत से बनती... अक्स उसका ही दिखता मुझको...
सब दोस्त खड़े हैं साथ मेरे .... दुश्मन से निबाह कौन करे ..!!
.................................................................................'तरुणा'...!!!
Aagaaz ye jab hai ab mera ... anjaam ki parvaah kaun kare ...
Ishq me doobi hoon jab main... Duniya ko tabaah kaun kare ;
Pyaare hain dard sabhi mujhko ... Zakhm lage sab apne se...
Chotein mujhko chubhti hi nahi... to un par karaah kaun kare ;
Allaah ki mujhpe inaayat hai ... dar se na jaaye koi khaali ..
Mandir jaisa man paawan hai ... to raah-e-dargaah kaun kare ;
Sab lagte mujhe apne jaise ... nahi adu koi ab mera hai...
Har raah saji ab phoolon se .... mujhko gumraah kaun kare ;
(adu-enemy)
Hai Noor-e-Khuda mujhko haasil .... Jadoo ishq ka chadha mujhpe..
Dil me hain pyaar ki barsaatein ..... nafrat ka gunaah kaun kare ;
Har baat muhabbat se banti ... aks uska hi dikhta mujhko ...
Sab dost khade hain saath mere .. Dushman se nibaah kaun kare ..!!
............................................................................................... 'Taruna'...!!!
No comments:
Post a Comment