Monday, March 3, 2014

आग़ाज़ और अंजाम....!!!


आग़ाज़ ये जब है अब मेरा ... अंज़ाम की परवाह कौन करे ...
इश्क़ में डूबी हूँ जबसे मैं ......  दुनिया को तबाह कौन करे  ;

प्यारे हैं दर्द सभी मुझको  ..... ज़ख्म लगे सब अपने से...
चोटें मुझको चुभती है नहीं .. तो उन पर कराह कौन करे  ;

अल्लाह की मुझपे इनायत है ... दर से न जाए कोई खाली ...
मंदिर जैसा मन पावन है ..... तो राहे-दरगाह कौन करे ;

सब लगते मुझे अपने जैसे .... नहीं अदू कोई अब मेरा है...
हर राह सजी है फूलों से .... मुझको गुमराह कौन करे  ;
(अदू-दुश्मन)

है नूरे-ख़ुदा मुझको हासिल .... ज़ादू इश्क़ का चढ़ा मुझपे...
दिल में हैं प्यार की बरसातें ... नफ़रत का गुनाह कौन करे  ;

हर बात मुहब्बत से बनती... अक्स उसका ही दिखता मुझको...
सब दोस्त खड़े हैं साथ मेरे .... दुश्मन से निबाह कौन करे ..!!


.................................................................................'तरुणा'...!!!


Aagaaz ye jab hai ab mera ... anjaam ki parvaah kaun kare ...
Ishq me doobi hoon jab main... Duniya ko tabaah kaun kare  ;

Pyaare hain dard sabhi mujhko ... Zakhm lage sab apne se...
Chotein mujhko chubhti hi nahi... to un par karaah kaun kare  ;

Allaah ki mujhpe inaayat hai ... dar se na jaaye koi khaali ..
Mandir jaisa man paawan hai ... to raah-e-dargaah kaun kare  ;

Sab lagte mujhe apne jaise ... nahi adu koi ab mera hai...
Har raah saji ab phoolon se .... mujhko gumraah kaun kare  ;
(adu-enemy)

Hai Noor-e-Khuda mujhko haasil .... Jadoo ishq ka chadha mujhpe..
Dil me hain pyaar ki barsaatein ..... nafrat ka gunaah kaun kare  ;

Har baat muhabbat se banti ... aks uska hi dikhta mujhko ...
Sab dost khade hain saath mere .. Dushman se nibaah kaun kare ..!!


............................................................................................... 'Taruna'...!!!







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