Thursday, December 19, 2013

अधूरे अल्फ़ाज़... !!!






अल्फ़ाज़ जाने कितने ... मुंह में अटक रहें हैं....
कितने ही किस्से रस्ते में ... मेरे भटक रहें हैं...  

बारिश..तूफ़ान इतने क्यूँ आए.. पता चला अब..
ज़ुल्फ़ें उन्होंने खोली... वो बादल झटक रहें हैं..

निगाहें मिली हैं जब से .. उस ज़ालिम से मेरी..
ग़ज़ले बहक रहीं हैं ...और शेर भटक रहें हैं...

चिलमन के पीछे जाके ... क्यूँ छुप गया है वो...
मुश्किल से जुदाई का .. हम गम गटक रहें हैं..

नज़रो से तेरी पहले ही ... बेहोश है ये दुनिया...
नींद आती नहीं है न ही..कोई ख्व़ाब फटक रहें हैं..

सुखन 'तरु' के अब तो .. उनको भी खटक रहें हैं..
क़ैद रखा जिसमे मुझको .. वो किलें चटक रहें है...

.................................................................'तरुणा'.... !!!


Alfaaz jaane kitne .... munh me atak rahen hain..
Kitne hi kisse raste me .. mere  bhatak rahen hain..

Baarish .. tufaan itna kyun aaye .... pata chala ab...
Zulfen unhone kholi .... vo baadal jhatak rahen hain...

Nigaahen mili hain jab se .... us zaalim se meri ...
Ghazlen bahak rahin hai.. aur sher bhatak rahen hain..

Chilman ke pchhe jaake .. kyun chhup gaya hai vo..
Mushqil se judaayi ka ... ham gam gatak rahen hain.. 

Nazron se teri pahle hi.... behosh hai ye duniya...
Neend aati nahi hai na hi.. koi khwaab fatak rahen hain..

Sukhan 'Taru' ke ab to ... unko bhi khatak rahen hain..
Qaid rakha jisme mujhko.. vo qile chatak rahen hain..

................................................................................'Taruna'... !!!







Monday, December 16, 2013

कब से है.... !!!






















हमको उस बेदर्द का...इंतज़ार कब से है...
राहों में बिछी हुई.... दस्तार कब से है....
(दस्तार-पगड़ी)

मैं मुफ़लिसी में पली...तू चरागां अमीरों का...
हमारे बीच ये ऊंच-नीच की..दीवार कब से है...

रफ़्तार मोहब्बत की रोक सका.. न गम-ए-दौरां भी मेरी..
ये हुस्न-ए-माहताब उसके इश्क़ में...निसार कब से है...

तवील शब को काटती हूँ .... उस एक चांद को देख मैं...
गर्चे...आसमां पे सितारें तो .... बेशुमार कब से हैं......
(तवील-लम्बी...गर्चे-हालाकि)

नाख़ुदा ने छोड़ा है मुझे...तूफ़ान-ए-समंदर में...पर...
गुंज़ाइश बची है अभी..मेरे हाथों में पतवार कब से है..

सिमट सका न फ़ैलाव...ज़िंदगी का तरु' से कभी भी..
वरना जीना तो सबके ही लिए.. दुश्वार कब से हैं.....

.................................................................'तरुणा'....!!!


Hamko us bedard ka.....intzaar kab se hai....
Raahon me bichhi huyi...dastaar kab se hai...
(dastaar-turban)

Main muflisi me pali....too charaagan ameeron ka...
Hamare beech ye oonch-neech ki...deewaar kab se hai..

Raftaar mohabbat ki rok saka na.. gam-e-dauran bhi meri..
Ye husn-E-maahtaab uske ishq me...nisaar kab se hai....

Us ek chaand ko dekh kaat'ti hoon...taveel shab ko main...
Garch-e...aasmaan pe sitaare to...beshumaar kab se hain...
(taveel-long...garch-e---though)

Nakhuda ne chhoda hai mujhe..toofaan-e-samandar me...par..
Gunzaaish bachhi hai abhi...mere haathon me patvaar kab se hai...

Simat saka na failaav... Zindgi ka 'Taru' se kabhi bhi...
Varna jeena to sabke liye...dushvaar kab se hai....

....................................................................................'Taruna'...!!!

Friday, December 13, 2013

बहुत दिन बाद.... !!!





टकरा गए वो दफ्फतन ...हमसे इक ज़माने के बाद...
नीची निग़ाह क्यूँ थी ....  ढेरों सितम ढाने के बाद...

महफ़िल में दाद मिलती रही ... देर तक मुझे ...
रोता रहा न जाने क्यूँ ... वो मेरे गाने के बाद...

ठुकरा के वो गए थे इस .. कूचा-ए-दिल को कल...
क्यूँ ढूंढते हैं अब मुझे .. वो ग़ैर को पाने के बाद ...

सोचा था भीगूंगी मैं ख़ूब ... बरसात में अबके...
बरसे बिना गुज़र गए ये .. अब्र भी छाने के बाद ...

कमजोरियों.. महरूमियों का ... शिकवा नहीं है अब...
पुरअसर तो हो गई 'तरु'.. कलम को उठाने के बाद ....

.....................................................................'तरुणा'...!!!


Takra gaye vo daf'fatan .. hamse ik zamaane ke baad ...
Neechi nigaah kyun thi .. dheron sitam dhane ke baad ...

Mehfil me daad milti rahi ......  der tak mujhe ....
Rota raha na jaane kyun .. vo gair ko paane ke baad...

Thukra ke vo gaye the .... iss kucha-e-dil ko kal ...
Kyun dhoondhte hain ab mujhe ... vo gair ko paane ke baad ...

Socha tha ki beegungi main khoob .. barsaat me abke...
Barse bina guzar gaye ye ...  abr bhi chhane ke baad ..

Kamjoriyon  .. mehroomiyon .... ka shiqwa nahi hai ab ...
Purasar to ho gayi 'Taru' ...  kalam ko uthane ke baad ...


............................................................................'Taruna'..... !!!



Monday, December 9, 2013

किसका क़ुसूर.... ???



वो रूठते हैं खुद ही ... और मनाए भी हम ही....
हर बार उनकी राह में .. पलकें बिछायें हम ही....

जब बोलते हैं हम पलट के .. न देखें एक नज़र भी..
हम भी न जब देखें .... तो कुसूरवार भी हम ही...

हमने कब कहा था ... दिल लगा लो हम से ही..
अब दे दिया हमको दिल .. तो गुनहगार भी हम ही..

जब देते थे तवज्जो .. तो भाव खाते थे वो जनाब....
अब कहते हैं कि उनसे बढ़के ... तलबगार हम नहीं..

सवाल सारे उनके .... फ़ैसलें भी लें वो खुद ही.....
ये कैसी अदालत है....कि जवाबदार भी हम नही...

सारे जहाँ में शोर मचाते हैं ... अपनी मुहब्बतो का..
अरे...दिया है जो हमको दिल ..क्या हक़दार हम नही..

................................................................'तरुणा'... ||


Vo roothte hain khud hi ... aur manaye bhi ham hi....
Har baar unki raah me .... palken bichhayen ham hi ...

Jab bolte hain ham palat ke ... na dekhen ek nazar bhi... 
Ham bhi na jab dekhen ... to  Qasoorwaar  bhi ham hi ... 

Hamne kab kaha tha ...  dil laga lo ham se hi ...
Ab de diya hamko dil .. to gunahgaar bhi ham hi.. 

Jab dete the tavajjo ... to bhaav khaate the vo janaab ..
Ab kahte hain ki unse badhke ... talabgaar ham nahi ...

Sawaal saare unke .... faisle bhi len vo khud hi ...
Ye kaisi adaalat hai .. ki jawaabdaar bhi ham nahi ...

Saare jahan me shor machaate hain .. apni muhabbaton ka ..
Arey .. diya hai jo hamko dil .. kya haqdaar ham nahin..


................................................................................. 'Taruna'.... !!!
.










Friday, December 6, 2013

मेरी राहें... .. !!!







ख़ुद को पा लूं तो.... ग़ज़ब का वो मंज़र होगा....
अब हर गम मेरे लिए..पहले से तो कमतर होगा...

आज ग़मगीन हूँ...मगर इतनी भी मायूस नहीं...
जानती हूँ मेरा कल...आज से तो बेहतर होगा...

मैं कोई शमशीर नहीं...काट दूं सारी दुनिया को...
मेरी रूह पे बनावट का न...कोई बख्तर होगा...

यूँ तो पुरदर्द थीं राहें... 'तरु' की अब तक सारी...
मेरी पुख्तगी कि तारीफ़ में..ख़ुदा भी पेश्तर होगा...

(पुरदर्द-दर्द से भरी.. पुख्तगी-मज़बूती ..पेश्तर-सर्वप्रथम)


...........................................................'तरुणा'...!!!

Khud ko paa loon to...ghazab ka vo manzar hoga....
Ab har gam mere liye...pahle se to kamtar hoga...

Aaj gamgeen hoon...magar itni bhi maayoos nahi....
Jaanti hoon mera kal.... aaj se to behtar hoga.....

Main koi shamsheer nahi...kaat doon main saari duniya ko...
Meri rooh pe banavat ka na.....koi bakhtar hoga...

Yun to purdard thi raahey...'Taru' ki ab tak saari....
Meri pukhtagi ki tarif me...Khuda bhi peshtar hoga...

(purdard-painful.. pukhtagi-maturity.. peshtar-first of all)

....................................................................................'Taruna'...!!!






Monday, December 2, 2013

अब कहाँ... ?????




करे चोट हुक्मरानों पे...वो तर्ज़े-क़लम अब कहाँ....???
ग़ुरबत में जो काम आए....वो धनवान अब कहाँ....???

हवाओं से हिल उठतीं हैं.... इमारतें अब तो....
जो झेलें ज़लज़लों को..वो बुनियाद अब कहाँ..??

बख़्शीश दे गये वो...मुझको मेरी मोहब्बत का....
दरियादिली उनकी सी...ज़माने में और कहाँ..???

संगतराश तोड़ने लगें हैं बुत...अपने ही हाथों...
किसी और बुतशिक़न की....दरकार अब कहाँ....???

(बुतशिक़न-मूर्ति तोड़ने वाला)

फ़ानी है ज़िंदगी भी...... न रहेंगें हम हमेशा.....
इस कसफ़ से 'तरु' की....कोई पहचान अब कहाँ...???

(कसफ़-भीड़)

..............................................................'तरुणा'......!!!

Karey chot hukmraano pe...vo tarze-qalam ab kahan...??
Gurbat me jo kaam aayen...vo dhanwaan ab kahan...????

Havaon se hil uthtin hain...imaartey ab to....
Jo jhele zalzalon ko...vo buniyaad ab kahan..??

Bakhshish de gaye vo...mujhko.meri mohabbat ka...
Dariyadili Unki sii...zamaney me aur kahan....???

Sangtaraash todne lagen hain...but apne hi haathon...
Kisi aur butshiqan ki... darkaar ab kahan......?????

(butshiqan-one who breaks idol)

Faani hai zindgi bhi..... na rahengey ham hamesha....
Is qasaf se 'Taru' ki.....koi pehchaan ab kahan.... ???

(qasaf-crowd)

...........................................................................'Taruna'....!!!

Saturday, November 30, 2013

मैं भी हूँ.....



क्यूँ बेज़ा ज़ुल्म सहे ... गुनाहगार मैं भी हूँ...
इन ज्यादतियों में तेरी.. मददगार मैं भी हूँ..

दो घड़ी तेरी आवाज़ की..सरगोशी सुनने को ...
दौड़ती हूँ नंगे पैर ... तलबगार मैं भी हूँ....

ख़ूबसूरती ज़माने को ..मेरे दिल की दिख गई..
सफ्फ़ाक ज़माने में ... असरदार मैं भी हूँ...
(सफ्फ़ाक-निर्दय)

नाजायज़ अंधेरों को .. मिटा के ही दम लिया..
काली अँधेरी रातों में .. चमकदार मैं भी हूँ...

ज़िंदगी की तमाम जंग ..जीत ली तो है मैंने ..
देखा है जबसे उसको ... तो बीमार मैं भी हूँ..

.......................................................'तरुणा'...!!!


Kyun beza zulm sahe .. gunahgaar main bhi hoon..
In jyadtiyon me teri .. madadgaar main bhi hoon ...

Do ghadi teri aawaaz ki ... sargoshi sunne ko...
Daudti hoon nange pair..talabgaar main bhi hoon..

Khubsoorti zamane ko ... mere dil ki dikh gayi ..
Saffaaq zamane me... asardaar main bhi hoon....
(saffaaq-brutal)

Najaayaz andheron ko ..mita ke hi dam liya...
Kaali andheri raaton me ..chamakdaar main bhi hoon..

Zindgi ki tamaam jung ... jeet li to hain maine ...
Dekha hai jabse usko .. to beemaar main bhi hoon..

.................................................................................'Taruna'...!!!




Thursday, November 28, 2013

सौगात.....




यूँ छुप-छुप कर ...  तेरा तकना... 
तुम्हारी ख़ामोश निग़ाहों में .... मुहब्बत का पैगाम...
मिली हूँ जब से तुमसे .... मैं ख़ुद से लड़ती हूँ...
तुम्हारे जज़्बातों से ..  कैसे रहूँ .... मैं अब अंजान.....
सोचती हूँ कि ... कर लूं...  इस प्यार का इक़रार...
याकि न मिलूँ कभी ..... दिल कमाल का... बजाता है सितार...
देखने को तुम्हें मैं .... ख़ुद को रोक नहीं पाती हूँ...
बेख़ुदी में ... अंजान राहों में ... बढ़ती जाती हूँ....
हर्फ़-ब-हर्फ़ ... मुझे याद है तेरी... हर बात.....
ज़िंदगी को मेरी... मिल गई है ... अनमोल सौगात...

.........................................................................'तरुणा'....!!!!


Yun chhup-chhup kar.... tera takna...
Tumhari khamosh nigaahon me ... muhabbat ka paigaam ....
Mili hoon jab se tumse ... main khud se ladti hoon ...
Tumhare jazbaaton se .. kaise rahun ... main ab anjaan .....
Sochti hoon ki ... kar loon... is pyaar ka iqraar.....
Yaki na miloon kabhi ... dil kamal ka .. bajata hai sitaar....
Dekhne ko tumhe main ... khud ko rok nahi paati hoon...
Bekhudi me ..anjaan raahon me ... badhti jaati hoon....
Harf-b-harf ... mujhe yaad hai ... teri har baat ...
Zindgi ko meri ... mil gayi hai .. anmol saugaat...

.................................................................'Taruna' ..... !!!!











Wednesday, November 27, 2013

तन्हा चाँद....





रात चमकीली..चाँद नशीला है...
तू नहीं है..तो रोशनी भी नहीं...
मैं नहीं हूँ.. कोई मातम भी नहीं...
तू नहीं है..तो कुछ कमी है कहीं..

चाँद आँगन में..जब से उतरा है..
घर में बढ़ती गई है.. तन्हाई....
एक झोंके सी तेरी..याद बही.....
दूर गाने लगी हैं..शहनाई...

तुझसे अब दूर..बहुत दूर हूँ मैं...
किसी मंज़िल से..वास्ता ही नहीं...
चलती हूँ रोज़.. नई राहों में ...
घर का तेरे कोई..रास्ता ही नहीं...

तेरे जीवन से.. जबसे निकली हूँ ...
हार अब जीत रही है...शायद...
मुझ पे जो बीती वो.. बीती है मगर..
आँख तेरी भी रीत रही ...शायद..
.................................................'तरुणा'..!!!

Raat chamkili... Chaand nasheela hai...
Too nahi hai... to roshni bhi nahi...
Main nahi hoon.. koi maatam bhi nahi...
Too nahi hai .. to kuchh kami hai kahi...

Chand aagan me...jab se utra hai...
Ghar me badhti gayi hai... Tanhaayi...
Ek jhonke si teri ... yaad bahi...
Door gaane lagi hai... Shehnaayi...

Tujhse ab door ..bahut door hoon main..
Kisi manzil se ... vaasta hi nahi....
Chalti hoon roz .. nayi raahon me....
Ghar ka tere koi.... raasta hi nahi...

Tere jeevan se ...jabse nikali hoon..
Haar ab jeet rahi hai .... Shaayad...
Mujh pe jo biti vo... biti hai magar...
Aankhe teri bhi reet rahi ... Shaayad.....

......................................................'Taruna'... !!!

Monday, November 25, 2013

लगाम....




मेरी वफाओं का ये बड़ा... ईनाम दे दिया...
रिश्ते को तोड़ने का ही.. इल्ज़ाम दे दिया..

परचम उठाया दुनिया में .. सच्चाई के लिए...
ख़िताब हमको ही... इंसान-ए-नाक़ाम दे दिया...

तेरी मुहब्बत ने बड़ा ..एहसान किया मुझपे... 
दिन-रात याद करने का .. इक काम दे दिया...

वो ख़त जो छुपाए थे ... बड़े जतन से मैंने ...
क्यूँ तूने मुझे उनको .. सरेशाम दे दिया...

इक जाम पिलाया मुझे .. महफ़िल में जो तूने..
उसने ही मुझको .. लग्ज़िश-ए-गाम दे दिया...
(लग्ज़िश-डगमगाहट... गाम-क़दम)

मैं थी हुस्ने-चरागां ... ये जान के तूने..
घर तो नहीं दिया .. बस इक बाम दे दिया...
(बाम-छज्जा)

चाबुक बहुत सहे... वक़्त ने ली है क्या करवट...
अब 'तरु' के ही हाथ में ... लगाम दे दिया....

...........................................................'तरुणा'..!!!

Meri wafaon ka ye bada... inaam de diya..
Rishte ko todne ka hi.. ilzaam de diya..

Parcham uthaya duniya me ..sachhyi ke liye...
Khitaab hamko hi..insaan-e-naaqaam de diya...

Teri muhabbat ne bada ..ehsaan kiya mujhpe..
Din-raat yaad karne ka.. ik kaam de diya...

Vo khat jo chhupaaye the ..bade jatan se maine..
Kyun toone mujhe unko.. sare-shaam de diya..

Ik jaam pilaaya  mujhe .. mehfil me jo toone..
Usne hi mujhko .. lagzish-e-gaam de diya...
(lagzish-to go on wrong path.. gaam-step)

Main thi husn-e-chraagan ... ye jaan ke toone...
Ghar to nahi diya .. bas ik baam de diya...
(baam-terrace)

Chaabuk bahut sahe .. waqt ne li hai kya karwat ...
Ab 'Taru' ke hi haath me .. lagaam de diya...

..............................................................'Taruna'...!!!






Sunday, November 24, 2013

तेरी कीमत....



कभी  चाहा तुझसे ... नज़रें चुरा लूं...
कभी चाहा ... इश्क़ से अपना दामन बचा लूं...
पर ये नाज़ो - अंदाज़ तेरे... और उस पर ये अदा...
झूठ होगा गर कहूं ... कि ये दिल तुझ पर नहीं है फ़िदा...
आँखों में ... नजरानो भरी शोखियाँ....
और ... लबों पे हसीन से अफ़साने....
तेरे आने भर से खिल उठतीं हैं ... सारी कलियाँ...
आबाद हो जाते हैं ... इस दिल के वीराने...
क्या है तेरी क़ीमत ... मेरे वजूद के लिए ...
इस बात को मैं ही जानूं ... या नादान दिल जाने.... 
न तुम जानो ... न ही ये दुनिया जाने .... 
..............................................................'तरुणा'.... !!!

Kabhi chaha tujhse ... nazren chura loon ...
Kabhi chaha ... Ishq se apna daaman bacha loon ... 
Par ye naaz-o-andaaz tere ... aur us par ye ada... 
Jhooth hoga gar kahun ... ki ye dil tujh par nahin hai fida...
Aankho me .. nazraano bhari shokhiyaan ... 
Aur ... labon pe haseen se afsaane ..
Tere aane bhar se khil uth'ti hain ... saari kaliyaan ....
Aabaad ho jaate hain ... is dil ke veerane ..
Kya hai teri keemat ... mere wajood ke liye ..
Iss baat ko main hi jaanu ... ya naadan dil jaane ...
Na tum jaano .... na hi ye duniya jaane ....

..........................................................................'Taruna'...!!!

Friday, November 22, 2013

वो आख़िरी पन्ना.... !!!




तेरे वजूद की शख्सियत... बुनी है मैंने...
हर्फ़-ब-हर्फ़.... तेरी तहरीर पढ़ी है मैंने...
हर इक सफें पर...इक नाम लिखा रखा है...
जैसे अपनी याद़ों को .. इनमे ही बसा रखा है...
पहले पन्ने पे लिखा नाम .. न है तुझसे जुदा....
अब तलक .. दिल-ओ-जां से है तू .. उसपे फ़िदा..
कितने पन्नो पे .. मिली है मुझे तेरी यादे....
जो किसी से किए थे ... वो सभी वादे...
पर...आख़िरी पन्ना ये क्यूँ ... कोरा छोड़ रहा है...
अरे.. इसमें तो .. तूने मुझको छुपा रखा है...
जानती हूँ कि ... है कोरा ये पन्ना .. आख़िरी...
पर नज़र आती है इसमें कहीं .. तस्वीर मेरी...
तू ज़माने से छुड़ाए.... लाख़ अपना दामन...
इस आखिरी पन्ने पे अटका है ... तेरा भी मन...

..............................................................'तरुणा'...!!!


Tere wajood ki shakhsiyat ... buni hai maine...
Harf-b-harf ... teri tahreer padhi hai maine...
Har ik safhe par.. ik naam likha rakha hai...
Jaise apni yaadon ko .. inme hi basa rakha hai..
Pahle panne pe likha naam .. na hai tujhse juda,,,
Ab talak .. dil-o-jaan se hai tu .. uspe fida...
Kitne panno pe .. mili hai mujhe teri yaade... 
Jo kisi se kiye the ... vo sabhi vaade...
Par... aakhiri panna ye kyun kora ... chhod rakha hai..
Arey... isme to .. toone mujhko chhupa rakha hai...
Jaanti hoon ki .. hai kora ye panna .. aakhiri...
Par nazar aati hai isme kahin ... tasveer meri...
Tu zamane se chhudaye .. laakh apna daaman... 
Is aakhiri panne pe atka hai ... tera bhi man...

...........................................................................'Taruna'... !!!  






Tuesday, November 19, 2013

ये कौन आया..... ...




ऐ दिल मेरे नादान न बन.. दीवानगी तो काम आ ही गई ...
ख़्वाबों का गुलशन महक गया...साँसों में खुश्बू छा ही गई...

पलकों के हिलोरें पर झूला....कोई जान से प्यारा हो ही गया...
दिल में बरसीं हैं बरसातें.... मौसम का इशारा हो ही गया...
जीवन में बहारें आयीं हैं... ये ख़ुशी मुझे बहका ही गई....

चुपके से किसने सदा दी है...जो दिल को मेरे धड़का ही गया...
मंदिर जैसे मेरे दिल में .. वो बनके ख़ुदा बस आ ही गया...
रास आने लगी ज़िंदगी मुझको ..ये मंज़िल तो अब भा ही गई...

उसका चेहरा बन के उपवन.. जब फूलों सा छा जाता है....
कोमल अपने उन हाथों से...  मुझे छूता है सहलाता है...
कोई पूछे कौन है ये जब तो...मैं ख़ुद से भी शरमा ही गई...

...................................................................'तरुणा'...!!!

Aiy dil mere nadan na ban...   deewaangi to kaam aa hi gayi...
Khwabon ka gulshan mahak gaya...sanon me khushbu chha hi gayi...

Palkon ke hilore par jhoola...koi jaan se pyaara ho hi gaya...
Dil me barsi hain barsaaten...mausam ka ishaara ho hi gaya...
Jeewan me baharen aayi hain... ye khushi mujhe bahka hi gayi...

Chupke se kisne sada di hai...jo dil ko mere dhadka hi gaya...
Mandir jaise mere dil me...vo banke Khuda bas aa hi gaya...
Raas aane lagi zindgi mujhko...ye manzil to ab bha hi gayi....

Uska chehra ban ke upvan...jab phoolon sa chha jata hai...
Komal apne un haathon se...mujhe chhoota hai sahlaata hai...
Koi poochhe kaun hai ye jab to...main khud se bhi sharma hi gayi...


...................................................................................................'Taruna'...!!!


Wednesday, November 13, 2013

वो शाम.....



जब ढलते सूरज में साथ डूबते .. वो शाम उधार है...
हवाओं में अनजानी खुश्बू सूंघते.. वो महक उधार है....

रेत में नंगे पाँव संग .. टहलते साग़र किनारे...
पानी में पैर भिगोते हम .. वो लहर उधार है....

गोल गप्पों के तीख़े स्वाद से ..आंसू बहते आँखों से..
सड़क किनारे कांच के गिलास की ..वो चाय उधार है..

लम्बी काली सड़कों में ...चल पड़ते यूँही बेमतलब...
हाथ पकड़ के गुनगुनाते .... वो नग्में उधार हैं...

तल्खियों को भूल कर..बेसाख्ता हँसते बिन बात..
जी लेतें ख़ुद को भी जब .. वो ज़िंदगी उधार है....

वो ज़िंदगी उधार है..........
...........................................................'तरुणा'... !!!

Jab dhalte sooraj me doobte saath ..Vo Shaam udhaar hai...
Havaaon me anjaani khushbu sunghte ..Vo Mahak udhaar hai...

Ret me nange paanv sang ... tahalte saagar kinaare....
Pani me pair bhigote ham ... Vo Lahar udhaar hai....

Gol-gappon ke teekhe swad se ..aansu bahte aankhon se...
Sadak kinaare kaanch ke gilaas ki ..Vo Chai udhaar hai...

Lambi kali sadkon me ... chal padte yunhi bematlab ...
Haath pakad ke gungunate .. Vo Nagme udhaar hai..

Talkhiyon ko bhul kar .. besaakhta hanste bin baat....
Jee lete khud ko bhi jab ... Vo Zindgi udhaar hai...

Vo Zindgi udhaar hai.........
................................................................................'Taruna'...!!!



Friday, October 18, 2013

पूरे चाँद की रात... !!!



चाँद पूरा है .... आज की रात......
साथ चांदनी की .. पुरनूर कहानियाँ...
इससे जुदा है .. मेरा वज़ूद..
जुड़ी है मेरी .. हर रुस्वाइयां...
हर जर्रा है ... रोशन..
बजती है हर ओर .. शहनाइयां...
फूलों.. पेड़ों.. गुंचों में..
बिखरी है .. प्यार की निशानियाँ....
कहीं वस्ल की ... बातें है...
तो कहीं लिपटी है .. तन्हाइयां..
चांदनी .. सिमटी है घाटियों में..
तो कहीं छाई है .... वीरानियाँ.....
छेड़ता...हैं चाँद...चांदनी साथ मिलके...
क्यूँ ये हवा..भी करे है... गुस्ताखियाँ...
याके .. मेरे ख्वाबगाह में.....
उतरी है .. रंगीन परछाइयां...
फ़िज़ाओं में रौनक़ है ... चाँद की..
चांदनी में हमारी ...  चाहत की गहराइयां...

...............................................................'तरुणा'...!!!

Chaand poora hai .... aaj ki raat...
Saath chaandni ki .. purnoor khahaniyaan...
Issey juda hai .. mera vajood ...
Judi hai meri ... har rusvaiynaan...
Har jarra hai ... roshan....
Bajti hai har aur ... shehnaaiyaan...
Phoolo .. pedon... gunchon me....
Bikhari hai ... pyaar ki kahaniyaan...
Kahin vasl ki .. baatey hain...
To kahin lipati hai ... tanhaaiyaan.....
Chaandni ... simati hai ghaatiyon me....
To kahin chhayi hain ... veeraniyaan ....
Chhedta hai Chaand...chaandni saath mike..
Kyun ye..hava bhi karey hai ...Gustaakhiyaan..
Yake ... mere khwaabgaah me ...
Utari hai ... rangeen parchaaiyaan ...
Fizaaon me raunaq hai ... chaand ki..
Chaandni me hamari .. Chaahat ki gehraaiyaan ..

..........................................................................'Taruna'.... !!!



Thursday, October 17, 2013

एहसास..... !!!




ख़्वाबों का शहर.. सजा सजा सा है..
फ़िर क्यूँ ये दिल.. बुझा बुझा सा है...

चाँद तन्हा है... चांदनी भी तन्हा....
जाने क्यूँ उठता...धुआँ धुआँ सा है...

बस्तियाँ बसाई थी.... ख़्वाबों की...
अब वो नगर भी...जला जला सा है....

उम्र लग जाती है...घर बसाने में...
फ़िर ये क्या.....घुटा घुटा सा है...

'तरु' जीना हो तो.. खुल के जी ले...
तेरा एहसास क्यूँ.. दबा दबा सा है...

....................................'तरुणा'...!!!

Khwaabon ka shehar...saja saja sa hai...
Phir kyun ye dil... bujha bujha sa hai....

Chand tanha hai... chandni bhi tanha....
Jaane kyun uthta...dhuaan dhuaan sa hai..

Bastiyaan basaayi thi....khwaabon ki....
Ab vo nagar bhi ....jala jala sa hai.....

Umr lag jaati hai...ghar basaane me....
Phir ye kya..... ghuta ghuta sa hai....

'Taru' jeena ho to... khul ke jee le....
Tera ehsaas kyun...daba daba sa hai...

.........................................................'Taruna'....!!!

एक मासूम गुनाह.... !!!




बरबाद कर दूं मैं आज ख़ुद को... इक बार तो ये गुनाह कर लूं....
पलट के देखे अगर तू मुझको .... ये ज़िंदगी भी तबाह कर लूं...

मुस्कुरा के देखती हूँ मैं तो...नेमतों को ज़िंदगी की रोज़ अब.....
चाहती हूँ अब खारों-गुलों से ....मैं एक जैसा निबाह कर लूं....

कभी तो आओ बेपर्दा होकर... बस इक शब भर के लिए तुम भी..
सारे सबाबों को छोड़ कर मैं ... मासूम सा इक गुनाह कर लूं....

तेरी नज़र की हदें ग़ज़ब हैं ... कि मांगती हैं पनाह बिज़ली...
झुके जो मुझपे कभी ये नज़रें ... मैं अपनी दुनिया तबाह कर लूं...

छोड़ो तमाशा बहुत हुआ अब.... गिरा दो परदे भी आज सारे....
मिटाना चाहूँ मैं ज़िंदगी को ... नक़ाब पलट मैं तबाह कर लूं...

...............................................................................'तरुणा'...!!!


Barbaad kar dun main aaj khud ko..Ik baar to ye gunaah kar lun...
Palat ke dekhe agar tu mujhko .. Ye zindgi bhi tabaah kar lun...

Muskura ke dekhti hun main to... Nematon ko zindgi ki roz ab...
Chaahti hun ab khaaron-gulon se... main ek jaisa nibaas kar lun...

Kabhi to aao beparda hokar ..... bas ik shab bhar ke liye tum bhi...
Saare Sabaabon ko chhod kar main.. Masoom sa ik gunaah kar lun..

Teri nazar ki haden ghazab hain .. Ki maangti hai panaah bizali....
Jhuke jo mujhpe kabhi ye nazarey.. Main apni duniya tabaah kar lun..

Chhodo tamasha bahut hua ab ... Gira do parde bhi aaj saare...
Mitana chaahun main zindgi ko..Naqaab palat main tabaah kar lun..

...................................................................'Taruna'... !!!

Saturday, October 12, 2013

मुझे अच्छा लगता है.... !!!



प्यार के एहसास से.. रुबरु हूँ मैं...
कच्ची उम्र का.... तकाज़ा तो नहीं...
न ही परिपक्वता का ... है कोई सवाल...
सिफ़ारिश आँखों की ... गुज़ारिश धडकनों की..
तेरे प्यार में तड़पना मुझे ... अच्छा लगता है... !!

तू मेरी क़िस्मत में है .. .कि नहीं...
नहीं मालूम मुझको ... जानना भी नहीं ...
ख़ुदा से मांगना तुझको पर ... अच्छा लगता है...
कोई हक़ है तुझपे मेरा ... याके नहीं....
मगर .. तेरी परवाह करना .. अच्छा लगता है..... !!

रिश्ता है हमारा ... एहसासों से भरा गहरे....
इस दुनिया की ... रस्मों और बातों से परे....
कभी साथ मेरे ... तू होगा .. या नहीं...
बस ये ख्व़ाब देखना हर पल ... अच्छा लगता है... !!

कुछ बात तो है तुझमे ... कुछ अदा है अनोखी...
तेरी याद़ों के जुगनू में जीना ... अच्छा लगता है....
बहलाया बहुत इस दिल को ... समझाया भी है कितना..
मानता नहीं ... ये फ़िर भी ... नादान बहुत है ये...
इसे तेरे लिए धड़कना  ... अच्छा लगता है....... !!

........................................................................'तरुणा'.... !!!

Pyaar ke ehsaas se .. Rubaru hoon main...
Kachchi umr ka ... Takajaa to nahi....
Na hi paripakvta ka .. hai koi sawaal....
Sifaarish aankon ki ... Guzarish dhadkanon ki....
Tere pyaar me tadapna mujhe ... Achcha lagta hai... !!

Too meri qismat me hai .. ki nahi....
Nahi maaloom mujhko .... jaan'na bhi nahi....
Khuda se maangna tujhko par... Achcha lagta hai....
Koi haq hai tujhpe mera .... yake nahi....
Magar .. teri parvaah karna ... Achcha lagta hai... !!

Rishta hai hamara ... ehsaason se bhara gehre...
Iss duniya ki ... rasmo  aur baaton se pare ....
Kabhi saath mere ...too hoga .. ya nahi...
Bas ye khwaab dekhna har pal.... Achcha lagta hai... !!

Kuchh baat to hai tujhme ... kuchh ada hai anokhi....
Teri yaadon ke jugnu me jeena .. Achcha lagta hai....
Bahlaya bahut is dil ko... samjhaya bhi hai kitna....
Maanta nahi  ... ye phir bhi ... naadaan bahut hai ye....
Isey tere liye dhadkna ..... Achcha lagta hai ...... !!

.............................................................................'Taruna'... !!!




Wednesday, October 9, 2013

बंजारा मन.... !!!



आज फ़िर ... मन मेरा ...
बंजारा होना... चाहता है..
तुझे लेके... अपने साथ....
दूर कही... खोना चाहता है..

सहरा की... तपन भी अब...
नहीं देती है... जलन कोई...
रेत के बिछौने पे.... ये दिल..
साथ तेरे... लुढ़कना चाहता है...

धूप की तेज़ी में भी.... अब...
गुमां होता है... ठंडक का...
किरणों की... बारिश में ये..
ज़िस्म ख़ुद को...भिगोना चाहता है..

दबे हुए सारे.... एहसास मेरे....
सिर उठाने.... लगे हैं अब...
मेरे अंतर का ... कमल फ़िर से..
मुस्कुरा के.. खिलना चाहता है...

..............................................'तरुणा'..... !!!

Aaj phir ... man mera...
Banjaara hona... chaahta hai..
Tujhe leke..... apne saarh..
Door kahi... khona chaahta hai...

Sahra ki...... tapan bhi...
Nahi deti ab... jalan koi...
Ret ke bichhaune pe... ye dil..
Saath tere....ludhakna chaahta hai...

Dhooo ki teji me bhi... ab..
Gunmaan hota hai... thandak ka..
Kirano ki ... baarish me ye...
Zism khud ko... bhigona chaahta hai..

Dabe huye saare... ehsaas mere.....
Sir uthane .... lage hai ab...
Mere antar ka...kamal phir se..
Muskura ke ..khilna chaahta hai...


....................................................'Taruna'... !!!

Monday, September 30, 2013

ज़िंदगी का बीज..... !!!



तू फ़िर आज इस तरह से मिला... मुझसे..
जैसे .. मिला था पहली बार ...
मेरा दिल किसी .... गुंचे सा चहका....
हर जर्रा..धरती का .... हमारे दिल सा धड़का....
फ़िज़ाओं के होंठों में ... शहद घुलने लगा ...
चाहतों की झील में ... चाँद उतरने लगा...
रात की दहलीज़ पे ... तारें कर रहे हैं ..अठखेलियाँ ...
छलकती चांदनी में मचलता  है .. हसरतों का जहां...
मुहब्बत के लम्हों से..खिली है ... मेरी मुरझाई ज़िंदगी.....
बेसाख्ता .. किसी क़ैदी से .... रिहाई कर रही है दिल्लगी ...
तेरी मुहब्बत के सितारों को ... यूँ पिरोया है मैंने....
जैसे बंज़र ज़मीं में ... बीज ज़िंदगी का..बोया है मैंने...
बीज... ज़िंदगी का.....
या मेरी ... मुहब्बत की बंदगी का...!!

...........................................'तरुणा'....!!!

Too phir aaj is tarah se mila ... mujhse...
Jaise .. mila tha pahli baar ...
Mera dil kisi .. gunche sa chehka ...
Har jarra..dharti ka ..... hamare dil sa dhadka...
Fizaaon ke honthon me ... shehad ghulne laga ....
Chaahton ki jheel me ... chaand utarne laga ...
Raat ki dehleej pe .. Taare kar rahen hain ..athkheliyaan ....
Chhalakti chaandni me machalta hai ... Hasraton ka jahan...
Muhabbat ke lamho se..khili hai ... Meri murjhaayi Zindgi ....
Besaakhta..kisi qaidi se ... rihaayi kar rahi hai dillagi ...
Teri muhabbat ke sitaaron ko ... yun piroya hai maine ....
Jaise banjar zameen me ... beej zindgi ka...boya hai maine ...
Beej ... Zindgi ka.....
Ya meri .. Muhabbat ki bandgi ka.... !!

...................................................................................'Taruna'...!!!