मेरी वफाओं का ये बड़ा... ईनाम दे दिया...
रिश्ते को तोड़ने का ही.. इल्ज़ाम दे दिया..
परचम उठाया दुनिया में .. सच्चाई के लिए...
ख़िताब हमको ही... इंसान-ए-नाक़ाम दे दिया...
तेरी मुहब्बत ने बड़ा ..एहसान किया मुझपे...
दिन-रात याद करने का .. इक काम दे दिया...
वो ख़त जो छुपाए थे ... बड़े जतन से मैंने ...
क्यूँ तूने मुझे उनको .. सरेशाम दे दिया...
इक जाम पिलाया मुझे .. महफ़िल में जो तूने..
उसने ही मुझको .. लग्ज़िश-ए-गाम दे दिया...
(लग्ज़िश-डगमगाहट... गाम-क़दम)
मैं थी हुस्ने-चरागां ... ये जान के तूने..
घर तो नहीं दिया .. बस इक बाम दे दिया...
(बाम-छज्जा)
चाबुक बहुत सहे... वक़्त ने ली है क्या करवट...
अब 'तरु' के ही हाथ में ... लगाम दे दिया....
...........................................................'तरुणा'..!!!
Meri wafaon ka ye bada... inaam de diya..
Rishte ko todne ka hi.. ilzaam de diya..
Parcham uthaya duniya me ..sachhyi ke liye...
Khitaab hamko hi..insaan-e-naaqaam de diya...
Teri muhabbat ne bada ..ehsaan kiya mujhpe..
Din-raat yaad karne ka.. ik kaam de diya...
Vo khat jo chhupaaye the ..bade jatan se maine..
Kyun toone mujhe unko.. sare-shaam de diya..
Ik jaam pilaaya mujhe .. mehfil me jo toone..
Usne hi mujhko .. lagzish-e-gaam de diya...
(lagzish-to go on wrong path.. gaam-step)
Main thi husn-e-chraagan ... ye jaan ke toone...
Ghar to nahi diya .. bas ik baam de diya...
(baam-terrace)
Chaabuk bahut sahe .. waqt ne li hai kya karwat ...
Ab 'Taru' ke hi haath me .. lagaam de diya...
..............................................................'Taruna'...!!!
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