ख़ुद को पा लूं तो.... ग़ज़ब का वो मंज़र होगा....
अब हर गम मेरे लिए..पहले से तो कमतर होगा...
आज ग़मगीन हूँ...मगर इतनी भी मायूस नहीं...
जानती हूँ मेरा कल...आज से तो बेहतर होगा...
मैं कोई शमशीर नहीं...काट दूं सारी दुनिया को...
मेरी रूह पे बनावट का न...कोई बख्तर होगा...
यूँ तो पुरदर्द थीं राहें... 'तरु' की अब तक सारी...
मेरी पुख्तगी कि तारीफ़ में..ख़ुदा भी पेश्तर होगा...
(पुरदर्द-दर्द से भरी.. पुख्तगी-मज़बूती ..पेश्तर-सर्वप्रथम)
...........................................................'तरुणा'...!!!
Khud ko paa loon to...ghazab ka vo manzar hoga....
Ab har gam mere liye...pahle se to kamtar hoga...
Aaj gamgeen hoon...magar itni bhi maayoos nahi....
Jaanti hoon mera kal.... aaj se to behtar hoga.....
Main koi shamsheer nahi...kaat doon main saari duniya ko...
Meri rooh pe banavat ka na.....koi bakhtar hoga...
Yun to purdard thi raahey...'Taru' ki ab tak saari....
Meri pukhtagi ki tarif me...Khuda bhi peshtar hoga...
(purdard-painful.. pukhtagi-maturity.. peshtar-first of all)
....................................................................................'Taruna'...!!!
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