फूलों सी ख़ुशबू लेकर मुस्काती ईद
प्यार मुहब्बत के पैग़ाम को लाती ईद ;
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बिखरी ख़ुशबू ऐसी शीर सिवइयों की
बच्चों की मानिंद मुझे ललचाती ईद ;
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कोई बहाना कर दिलबर से मिलने को..
चाँद देखने फिर छत पर आ जाती ईद ;
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मिलजुल कर बांटी जाती थीं ये
खुशियाँ..
जाने क्यूँ अब धर्मो में बंट जाती
ईद ;
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महंगे तोहफ़े हैं बाज़ार की रौनक़ अब
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महंगाई से मुफ़लिस को तरसाती ईद ;
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होली क्रिसमस और दीवाली साथ थे तब..
अब हैं तन्हा और तन्हा मन जाती ईद ;
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दौर अनोखा था साँझा त्योहारों का
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'तरुणा' को लौटा दो वही सुहाती ईद...!!
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............................................'तरुणा'....!!!
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