एक धोखा और मुझको दीजिये मेरे हुज़ूर...
फेंकिये फिर से वो पांसा फेंकिये
मेरे हुज़ूर ;
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ज़ख़्म तो सारे हैं सूखे दाग़ भी
दिखते नहीं ...
चोट दिल पर इक नई तो कीजिये मेरे
हुज़ूर ;
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आप कहते थे नशा आँखों में गहरा है
मेरी...
जाम नज़रों का वही पी लीजिये मेरे
हुज़ूर ;
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क्यूँ तकल्लुफ़ हो रहा है आपको
समझी न मैं...
वो पुराना खेल फिर से खेलिये मेरे
हुज़ूर ;
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आप मेरे ज़ब्त की चिंता न कीजे ,छोड़िये...
दिल मेरा बेख़ौफ़ होके चीरिये मेरे हुज़ूर ;
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एक भी छींटा कभी पड़ने न देंगे आप
पर...
दाग़ ये बस रूह के धो लीजिये मेरे
हुज़ूर ;
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आप हैं मासूम 'तरुणा' जानती तो ख़ूब है...
किस लिए ख़ामोश हैं कुछ बोलिए मेरे
हुज़ूर ..!!
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.......................................................'तरुणा'...!!!
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