Sunday, July 10, 2016

बर्फ़...!!!



रिश्तों पे जमी बर्फ़ गलाने में लगी हूँ ....
ज़ख्मों को अभी फिर से सुखाने में लगी हूँ ;
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तन्हाई के आगोश में कल तक मैं रही थी...
अब भीड़ से मैं हाथ मिलाने में लगी हूँ ;
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मुमकिन न हुआ मुझसे मेरे दिल का सँवरना...
इस वास्ते मैं घर को सजाने में लगी हूँ ;
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दिन रात वो जीवन पे मेरे बोझ बने हैं...
बीते जो तेरे साथ भुलाने में लगी हूँ ;
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इस दौर की बेजान मुहब्बत में वफ़ाएँ...
किस शै पे यकीं ख़ुद को दिलाने में लगी हूँ ;
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पूछे न कोई हाल भी 'तरुणा' का यहाँ अब...
कुछ और हूँ कुछ और दिखाने में लगी हूँ..!!
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......................................................’तरुणा’...!!!




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