हमदम मेरा इतना भी तो मग़रूर नहीं है...
झुक जाये मेरा सर उसे मंज़ूर नहीं है
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तुम प्यार के बदले न मुझे प्यार दो
लेकिन...
नफ़रत भी मगर देने का दस्तूर नहीं है
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महसूर मुहब्बत में तो हर पल हूँ मैं उसकी...
वो दूर भी है मुझसे कभी दूर नहीं है
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(महसूर-घेरे में )
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हाँ इश्क़ में दिन रात मेरा दिल तो
जला पर..
दिल पर मेरे छाला तो है नासूर नहीं है ;
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कुछ और मुझे उसके सिवा याद कहाँ
अब...
तारी है नशा प्यार का काफ़ूर नहीं है
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रुसवाईयां दे दीं हैं मुझे इश्क़ ने
कितनी..
अब कौन कहे ‘तरुणा’ तू मशहूर नहीं है..!!
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...................................................'तरुणा'..!!!
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