Friday, July 1, 2016

मुसीबत...!!!



हर मुसीबत को टाल सकती हूँ ...
ख़ुद को हर पल संभाल सकती हूँ ;
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गरचे सूरज से राब्ता तो नहीं..
एक दीपक तो बाल सकती हूँ ;
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गुल खिलाने की मुझको आदत है..
वरना कांटे निकाल सकती हूँ ;
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इसका अंजाम है मुझे मालूम...
वरना पत्थर उछाल सकती हूँ ;
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बाद गिरने के ये तो सीखा है...
गिर के खुद को संभाल सकती हूँ ;
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प्यार करते हो तो यकीं रक्खो...
वरना शक़ मैं भी पाल सकती हूँ ;
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तीर तुम जो चलाओगे मुझ पर..
उनको फूलो में ढाल सकती हूँ ;
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दिल दुखाना नहीं मुझे वरना...
तंज़ में बात ढाल सकती हूँ ;
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प्यार में दोगे गर कोई धोखा..
तुमको दिल से निकाल सकती हूँ ;
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मुझको प्यारी है तिश्नगी तरुणा
वरना दरिया खंगाल सकती हूँ...!!
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.......................................'तरुणा'...!!!









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