इश्क़ की लौ को ज़रा दिल से लगा कर
देखो...
चाँद पहलू में बिछा होगा बुलाकर
देखो ;
.
बात यूँ तो तेरी कड़वी भी भली
लगती है...
चाशनी अपनी जुबां में तो मिलाकर
देखो ;
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याद से मेरी अगर कोई ख़लल पड़ता
है..
याद को मेरी ज़रा दिल से भुला कर
देखो ;
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तुम जो कहते हो हमें इश्क़ में
पागल हैं हम..
इश्क़ को दिल पे कभी ख़ुद के सजाकर
देखो ;
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बात छोटी सी सही कहना इशारे ही
में..
फ़ैल जाएगी इसे लब पे न लाकर देखो
;
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तुम न सूरज के भरोसे पे यूँ बैठो
शब भर ...
है अँधेरा तो कोई दीप जला कर
देखो ..!!
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.....................................................'तरुणा'...!!!
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