Wednesday, March 2, 2016

उलझे हुए ख़्याल... !!!













कितने उलझे हुए ख़्यालों में..
ज़िंदगी कट गई सवालों में ;
.
ज़िस्म की भूख मिट गई लेकिन..
क़ैद लेकिन हैं रूह तालों में ;
.
हर घड़ी ये गुमान होता है..
है अंधेरे बहुत उजालों में ;
.
खा गए लोग तो ज़ख़ीरे तक..
हम भटकते रहे निवालों में ;
.
हमने तुमको कहाँ नहीं ढूँढा...
थे कलीसों न तुम शिवालों में ;
.
आप क़ीमत अगर चुकायेंगे..
छाप देंगे सभी रिसालों में ;
.
उजले चेहरे ही देखते सब हैं..
कौन देखे लहू है छालों में ;
.
आप को कौन जानता है यहाँ ...
आप तस्वीरों में न मालों में..!!
.
.......................................'तरुणा'...!!!






No comments: