कितने उलझे हुए ख़्यालों में..
ज़िंदगी कट गई सवालों में ;
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ज़िस्म की भूख मिट गई लेकिन..
क़ैद लेकिन हैं रूह तालों में ;
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हर घड़ी ये गुमान होता है..
है अंधेरे बहुत उजालों में ;
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खा गए लोग तो ज़ख़ीरे तक..
हम भटकते रहे निवालों में ;
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हमने तुमको कहाँ नहीं ढूँढा...
थे कलीसों न तुम शिवालों में ;
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आप क़ीमत अगर चुकायेंगे..
छाप देंगे सभी रिसालों में ;
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उजले चेहरे ही देखते सब हैं..
कौन देखे लहू है छालों में ;
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आप को कौन जानता है यहाँ ...
आप तस्वीरों में न मालों में..!!
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.......................................'तरुणा'...!!!
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