Tuesday, February 23, 2016

अलग अलग किरदार...!!!



फ़र्ज़ निभाया दोनों ही ने हम पर जिम्मेदारी थी ...
दोनों के किरदार अलग थे दोनों की फनकारी थी ;
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एक ही शाख़ पे दोनों बैठे एक हमारी आरी थी ..
डाल काट के बेच दी हमने अब बाकी बेकारी थी ;
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दिल का बनी खिलौना थी मैं वो माहिर व्यापारी था...
ख़ूब कमाई हुई हमारी ख़बर यही बाज़ारी थी ;
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दिल में अब वो रहा नहीं है घर में उसके मैं कब हूँ...
हारा फ़र्ज़ से प्यार हमारा सिर्फ यही हकदारी थी ;
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चालें चली बिसात बिछा कर खेला प्यार का खेल बहुत..
दोनों हारे जीत समझ के कैसी ये होशियारी थी ;
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उसको नहीं था मुझसे मतलब बस सौंपा घरबार मुझे..
कोई भी अधिकार नहीं था जैसे एक लाचारी थी ;
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दुनियादार बड़ा था वो और मैं दिल से मजबूर बहुत...
खूब मिलावट की रिश्ते में सड़क बनी सरकारी थी ;
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रोग प्रेम का लगा था मुझको दौलत की थी ललक उसे..
बारी बारी जूझ रहे थे अजब सी ये बीमारी थी ...!!
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.................................................................'तरुणा'...!!!

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