कहीं
भी जाऊँ मुझको सामने रक्खा मिला पत्थर..
कहीं
इंसान थे पत्थर कहीँ थे देवता पत्थर ;
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बनाया
था ख़ुदा ने तो , ये शीशे का मकां मेरा..
उसे
तोड़ा ज़माने ने नज़र से तर रहा पत्थर ;
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भले
हर राह पर मेरी बिछे पत्थर हज़ारों थे...
हटाये
दूसरों की राह से मैंने सदा पत्थर ;
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अगर
खुद पर भरोसा हो ये पत्थर साथ देते हैं ..
कभी
दिखता है काशी में कभी काबा हुआ पत्थर ;
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जिन्होंने संग लफ़्ज़ों के हैं फैंके ये नहीं सोचा...
लगी
है चोट कितनी किस जगह जाकर लगा पत्थर ;
(संग
– पत्थर /stone )
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ख़बर
रिश्तों की तो हमको पता चलती नहीं लेकिन..
ख़बर
अखबार देतें हैं कहाँ फिर से चला पत्थर ;
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लगी
है चोट जब इसको कलेजा मुंह को आता है ..
हमेशा
एक मूरत में बना संवरा ढला पत्थर ;
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दिलो
की अब नहीं क़ीमत हुये पत्थर सभी के दिल..
नगीने
की अंगूठी में सभी ने बस जड़ा पत्थर ..!!
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.......................................................................'तरुणा'...!!!
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Kahin bhi
jaaun mujhko saamne rakkha mila pat'thar..
Kahin
insaan the pat'thar kahin the devta pat'thar ;
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Banaya
tha Khuda ne to ye sheeshe ka makaAn mera ..
Usey toda
zamane ne nazar se tar raha pat'thar ;
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Bhale har
raah par meri bichhe pat'thar hazaron the ..
Hataye
doosron ki raah se maine sada pat'thar ;
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Agar khud
par bharosa ho ye pat'thar saath dete hain ..
Kabhi
dikhta hai Kaashi me kabhi Kaba hua
pat'thar ;
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Jinhone
sang lafzon ke hain fenke ye nahi socha...
Lagi hai
chot kitni kis jagah jakar laga pat'thar ;
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Khabar
rishton ki to hamko pata chalti nahi lekin..
Khabar
akhbaar dete hain kahan par phir chala pat'thar ;
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Lagi hai
chot jab isko kaleja munh ko aata hai ..
Hamesha
ek moorat me bana sanwra dhala pat'thar ;
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Dilo ki
ab nahi keemat mera huye pat'thar sabhi
ke dil..
Naheene
ki angoothi me sabhi ne bas jada pat'thar ..!!
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................................................................................'Taruna'...!!!
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