Friday, October 9, 2015

पत्थर... !!!



कहीं भी जाऊँ मुझको सामने रक्खा मिला पत्थर..
कहीं इंसान थे पत्थर कहीँ थे देवता पत्थर ;
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बनाया था ख़ुदा ने तो , ये शीशे का मकां मेरा..
उसे तोड़ा ज़माने ने  नज़र से तर रहा पत्थर  ;
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भले हर राह पर मेरी  बिछे पत्थर हज़ारों थे...
हटाये दूसरों की राह से  मैंने सदा पत्थर ;
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अगर खुद पर भरोसा हो  ये पत्थर साथ देते हैं ..
कभी दिखता है काशी में  कभी काबा हुआ पत्थर ;
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जिन्होंने  संग लफ़्ज़ों के हैं फैंके ये नहीं सोचा...
लगी है चोट कितनी किस जगह जाकर लगा पत्थर ;
(संग पत्थर /stone )
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ख़बर रिश्तों की तो हमको  पता चलती नहीं लेकिन..
ख़बर अखबार देतें हैं  कहाँ फिर से चला पत्थर ;
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लगी है चोट जब इसको  कलेजा मुंह को आता है ..
हमेशा एक मूरत में  बना संवरा  ढला पत्थर ;
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दिलो की अब नहीं क़ीमत हुये पत्थर सभी के दिल..
नगीने की अंगूठी में सभी ने बस जड़ा पत्थर ..!!
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.......................................................................'तरुणा'...!!!

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Kahin bhi jaaun mujhko saamne rakkha mila pat'thar..
Kahin insaan the pat'thar kahin the devta pat'thar ;
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Banaya tha Khuda ne to ye sheeshe ka makaAn mera ..
Usey toda zamane ne nazar se tar raha pat'thar ;
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Bhale har raah par meri bichhe pat'thar hazaron the ..
Hataye doosron ki raah se maine sada pat'thar ;
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Agar khud par bharosa ho ye pat'thar saath dete hain ..
Kabhi dikhta hai Kaashi me  kabhi Kaba hua pat'thar ;
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Jinhone sang lafzon ke hain fenke ye nahi socha...
Lagi hai chot kitni kis jagah jakar laga pat'thar ;
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Khabar rishton ki to hamko pata chalti nahi lekin..
Khabar akhbaar dete hain kahan par phir chala pat'thar ;
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Lagi hai chot jab isko kaleja munh ko aata hai ..
Hamesha ek moorat me bana sanwra dhala pat'thar ;
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Dilo ki ab nahi keemat mera huye  pat'thar sabhi ke dil..
Naheene ki angoothi me sabhi ne bas jada pat'thar ..!!
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................................................................................'Taruna'...!!!

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