एक
क़तरा अश्क़ का वो .. फिर बहाने ..आ गए...
ज़ख्म
अपना फिर पुराना .. वो दिखाने.. आ गए ;
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जो
कभी कहते .. खड़े होगे न तुम अब .. उमर भर..
हम
संभल पाये जरा जो .. फिर गिराने .. आ गए ;
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ग़ैर
है जब ..
ग़ैर बन के .. वो नहीं क्यूँ .. हैं मिले...
वक़्त
या बेवक्त .. हमको .. आज़माने आ गए ;
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जिंदगी
भर जो कभी ... खुलके न पल भर ..को हंसे
जब
कहीं आंसू दिखे तो .. मुस्कुराने .. आ गए ;
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क़ायदे
सारे किए ... तजवीज़ जब ... मेरे लिए...
हाय..! मौक़ा देख के … मरहम लगाने .. आ गए ;
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प्यार
का अब.. नाम
भी ... तकलीफ़ देता .. है मुझे...
क्यूँ
ग़ज़ल वो .. इश्क़
की तुम .. गुनगुनाने.. आ गए ;
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जब
यही करना .. उसे था … क्यूँ कहर बरपा किया ..
जो
थे गुज़रे .. याद 'तरु'
को
... वो ज़माने …आ गए ... !!
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Ek qatra ashq ka wo ... phir bahane aa gaye..
Zakhm apna phir purana ... wo dikhane aa gaye
;
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Jo kabhi .. khade n hoge tum ..ab umr
bhar..
Ham jo sambhle the zara sa .. phir giraane aa
gaye ;
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Gair hain jab .. gair ban ke.. wo nahi kyun ..hain mile..
Waqt ya bewaqt .. hamko.. aazmaane aa gaye;
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Gair hain jab .. gair ban ke.. wo nahi kyun ..hain mile..
Waqt ya bewaqt .. hamko.. aazmaane aa gaye;
.
Zindgi bhar jo kabhi .. khul ke na pal bhar ...ko hanse..
Jab kahin aanso dikhe to.... muskuraane aa
gaye ;
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Qaayde saare kiye .. tajweez jab .. mere liye...
Haay!.. mauqa dekh ke... marham lagane aa
gaye ;
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Pyaar ka ab naam bhi ... takleef deta hai
mujhe ..
Kyun ghazal wo ishq ki tum... gungunaane aa
gaye ;
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Jab yahi karna use tha..... kyun kahar barpa kiya...
Jo the guzre yaad 'Taru' ko .. wo zamane aa
gaye ..!!
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......................................................................................'Taruna'...!!!
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