दिल-ए-नाक़ाम
को अब ... कोई तमन्ना ही नहीं...
कोई
दुश्मन नहीं.. और कोई भी ..अपना ही नहीं ;
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उनसे
पूछो के क्या उनका भी ... कहीं है कोई...
सारी
दुनिया में एक .. हम ही तो .. तन्हा ही नहीं ;
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फूल
एक दिल पे खिलाया था .. मुहब्बत का कभी ....
उनके
चेहरे सा ... कोई और तो ... देखा ही नहीं ;
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वो
करम करते हैं मुझपे .... के सितम करते
हैं...
कुछ
तो करते हैं .. मुझे कोई भी ..शिकवा ही नहीं ;
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बारहा
लगता है .. आए हैं वो.. पुरशिश को मेरी...
जाके
दर पर जो.. देखा ... तो कोई था ही नहीं ;
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पहले
इक दर्द सा उठता था ... जो वो जाते थे ..
कोई
दूरी है .. अब उनसे .. पता चलता ही नहीं ;
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यूँ
तो गुज़रा है बड़ा वक़्त ... जो मुड़ कर देखा..
साल
कितने गए .. पल कोई भी बीता ही नहीं ..!!
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...................................................................'तरुणा'...!!!
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Dil-e-naaqam
ko ab... koi tamnna hi nahi..
Koi
dushman nahi aur... koi bhi apna hi nahi ;
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unse
puchho ke kya unka bhi ... kahin hai koi...
saari
duniya me ek .. ham hi to .. tanha hi nahi ;
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Phool ek
dil pe khilaya tha .. muhabbt ka kabhi..
Unke
chehre sa ... koi aur to.. dekha hi nahi ;
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Wo karam
karte hain mujhpe .. ke sitam karte hain..
Kuchh to
karte hain .. mujhe koi bhi.. shiqwa hi nahi ;
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Baarha
lagta hai ... aaye hain wo .. purshish ko meri..
Jaake dar
par jo ... dekha .. to koi tha hi nahi ;
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Pahle ik
dard sa uthta tha ... jo wo jaate the...
Koi doori
hai .. ab unse ... pata chalta hi nahi ;
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Yun to
guzra hai bada waqt ... jo mud kar dekha...
Saal
kitne gaye ... pal koi bhi beeta hi nahi ...!!
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..................................................................................'Taruna'...!!!
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