Monday, January 5, 2015

कुछ भी नहीं.... !!!



दिल-ए-नाक़ाम को अब ... कोई तमन्ना ही नहीं...
कोई दुश्मन नहीं.. और कोई भी ..अपना ही नहीं ;
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उनसे पूछो के क्या उनका भी ... कहीं है कोई...
सारी दुनिया में एक .. हम ही तो .. तन्हा ही नहीं ;
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फूल एक दिल पे खिलाया था .. मुहब्बत का कभी ....
उनके चेहरे सा ... कोई और तो ... देखा ही नहीं ;
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वो करम करते हैं मुझपे ....  के सितम करते हैं...
कुछ तो करते हैं .. मुझे कोई भी ..शिकवा ही नहीं ;
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बारहा लगता है .. आए हैं वो.. पुरशिश को मेरी...
जाके दर पर जो.. देखा ... तो कोई था ही नहीं ;
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पहले इक दर्द सा उठता था ... जो वो जाते थे ..
कोई दूरी है .. अब उनसे .. पता चलता ही नहीं ;
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यूँ तो गुज़रा है बड़ा वक़्त ... जो मुड़ कर देखा..
साल कितने गए .. पल  कोई भी बीता ही नहीं ..!!
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...................................................................'तरुणा'...!!!

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Dil-e-naaqam ko ab... koi tamnna hi nahi..
Koi dushman nahi aur... koi bhi apna hi nahi ;
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unse puchho ke kya unka bhi ... kahin hai koi...
saari duniya me ek .. ham hi to .. tanha hi nahi ;
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Phool ek dil pe khilaya tha .. muhabbt ka kabhi..
Unke chehre sa ... koi aur to.. dekha hi nahi ;
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Wo karam karte hain mujhpe .. ke sitam karte hain..
Kuchh to karte hain .. mujhe koi bhi.. shiqwa hi nahi ;
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Baarha lagta hai ... aaye hain wo .. purshish ko meri..
Jaake dar par jo ... dekha .. to koi tha hi nahi ;
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Pahle ik dard sa uthta tha ... jo wo jaate the...
Koi doori hai .. ab unse ... pata chalta hi nahi ;
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Yun to guzra hai bada waqt ... jo mud kar dekha...
Saal kitne gaye ...  pal  koi bhi beeta hi nahi ...!!
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..................................................................................'Taruna'...!!!


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