Sunday, February 8, 2015

दस्तूर... !!!





हमदम मेरा इतना भी .... मगरूर नहीं है...
झुक जाये सर मेरा ये ... मंज़ूर नहीं है ;
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बदले में चाहत के ... चाहत ना दो मुझको..
देने का तो नफ़रत भी ... दस्तूर नहीं है ;
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चाहत में ..मैं भी जीना .. खुद सीख रही हूँ..
परवाज़ी दी है इसने ... नासूर नहीं है ;
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मसरूर नज़र हूँ ... एक ज़माने से उसकी...
कोई भी दूजा ऐब  ... अब हुज़ूर नहीं है ;
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महसूर मुहब्बत में ... हर पल मैं हूँ उसकी...
कोई भी गर दूरी है तो ..... दूर नहीं है ;
(महसूर-घिरी हुआ.. घेरे में )
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इश्क़ गया है देकर .. रुसवाईयां कितनी ..
अब 'तरु' कैसे कह दे के .. मशहूर नहीं है..!!
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............................................................'तरुणा'..!!!

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Hamdam mera itna bhi ... magroor nahi hai...
Jhuk jaaye sar mera ye ... manzoor nahi hai ;
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Badle me chaahat ke ... chaahat na do mujhko ..
Dene ka to nafrat bhi ....... dastoor nahi hai ;
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Chaahat me ..main bhi jeena .. khud seekh rahi hun...
Parwaazi di hai isne ........ naasoor nahi hai ;
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Masroor nazar hun ... ek zamane se uski .....
Koi bhi dooja aib..... ab huzoor nahi hai ;
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Mehsoor muhabbat me... har pal main hun uski..
Koi bhi gar,, doori hai to .... door nahi hai ;
(mehsoor--encircled)
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Ishq gaya hai dekar ..... ruswaaiyaan kitni ...
Ab 'Taru' kaise kah de ke .. mash'hoor nahi hai..!!
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.............................................................................'Taruna'...!!!

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