भटकें हैं आपके लिए तन्हा कहाँ
कहाँ..
पूछो न हमने आपको ढूँढा कहाँ कहाँ
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दिल तोड़ने के बाद फिर आकर तो देखते...
छाले कहाँ हैं और है पीड़ा कहाँ
कहाँ ;
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आंखों में कल्पना में कभी दिल के सहन में.. ..
हरजाई सा लगा है वो आया कहाँ कहाँ
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छाया तो था सुलगती फ़ज़ाओं में वो
मगर..
मालूम ही न हो सका बरसा कहाँ कहाँ
;
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डरते रही हमेशा बताने से दिल के
राज़...
मेरे दयारे दिल में वो उतरा कहाँ
कहाँ ;
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‘तरुणा’
वो दोस्त था मेरा प्यारा भी था
मगर ..
काटा उसी ने ही मेरा पत्ता कहाँ
कहाँ ..!!
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................................................'तरुणा'...!!!
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