Friday, May 20, 2016

ज़ब्त -ए-दिल ...!!!


ज़ब्त -ए-दिल को न तुम आज़माया करो...
तीर नज़रों से यूँ मत चलाया करो ;
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प्यार से देखिए अपने माँ-बाप को.....
नेकियाँ आप ऐसे कमाया करो ;
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मुश्किलें तो मिलेंगी हर इक राह पर ..
इनसे डरकर न हिम्मत गंवाया करो ;
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लफ़्ज़ खो जायेंगे भीड़ मे सब के सब...
जा ब जा तुम न इनको सुनाया करो ;
(जा ब जा - जगह जगह )
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मुस्कुराहट से रोशन है दोनों जहाँ...
कोई क़ीमत न इसकी लगाया करो :
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कौन अपना है पहचान हो जाएगी ..
दोस्तों को कभी आज़माया करो ;
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ज़िस्म के दाग़ सबको दिखेंगे मगर..
ज़ख्म बेखौफ़ दिल पे लगाया करो ;
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प्यार के रंग हैं वस्ल भी हिज़्र भी ..
साथ इनका कभी तो निभाया करो ;
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बह्स बे सूद है इससे क्या फ़ायदा...
बात को इस क़दर मत बढ़ाया करो ;
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कौन है जिसके दामन पे छीटें न हों..
उंगलियाँ यूँ न 'तरुणा' उठाया करो ..!!
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........................................'तरुणा'...!!!





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