जिधर का रुख वो करता है सफ़र को
तोल लेता है ..
कहाँ ठहरें कहाँ दम लें डगर को
तोल लेता है ;
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जिसे चिंतन की आदत है सभी के भेद
पहचाने ..
उचटती सी नज़र में हर बशर को तोल लेता है ;
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उसी मालिक ने बख्शा है परिंदे को
हुनर ऐसा..
नशेमन के लिए शाख़े शज़र को तोल
लेता है ;
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परख लेता है वो इक़दाम अपने
दुश्मनों के सब..
मुख़ालिफ सम्त वालों के जिगर
को तोल लेता है ;
(इक़दाम- क़दम उठाना)
.
इसी खदशे से मैं उससे निग़ाहें
फेर लेती हूँ ....
मिलाते ही नज़र ज़ालिम नज़र को तोल
लेता है ;
(खदशे-डर)
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इधर मतला पढ़ा ‘तरुणा’ समझ
लेता है मक्ते तक ..
ग़ज़ल में डूब कर मेरी असर को तोल
लेता है ..!!
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......................................................................'तरुणा'...!!!
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