आज़माया तो है गम ने पर ख़ुशी जाती
नहीं ;
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उसकी हर नेमत पे नाशुक्री किये
जाते हैं हम ...
ज़ेहन में ईमां है दिल की काफ़िरी
जाती नहीं ;
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आजकल माहौल में भी राम जाने क्या
घुला...
अब हवा की जाने क्यूँ आवारगी
जाती नहीं ;
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इक कसक कम हो गई तो दूसरी आ
जाएगी...
इन सहारों की वजह से शायरी जाती
नहीं ;
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नाम पर मय के न जाने क्या पिलाया
है मुझे...
होश में रहते हुए भी बेख़ुदी जाती
नहीं ;
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क्या बतायें हम कि साहब रोशनी के
वास्ते..
घर जलाया खुद जले हैं तीरगी जाती
नहीं ;
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बेवफ़ा ने हर कदम पे हमको धोखे तो
दिए...
हम भी जिद्दी हैं ग़ज़ब के आशिक़ी
जाती नहीं ;
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गालियाँ दो-चार बदले में न दे
पाई कभी..
हूँ मैं सादादिल या मेरी बुजदिली
जाती नहीं ;
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फ़ख्र है मुझको तो ‘तरुणा’ दुश्मनी
पर दोस्त की..
दुश्मनी इतनी बढ़ी पर दोस्ती जाती
नहीं ...!!
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...............................................................’तरुणा’....!!!
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