कब तक यूँ नज़दीक से मेरे आँख बचा
कर जाओगे..
तन्हाई की धूप में आख़िर कब तक तुम
झुल्साओगे ;
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एक दिलासा तो दे जाओ हो चाहे वो
झूठा ही..
“जा तो रहे हो ये तो बता दो लौट
के कब तक आओगे “
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इक सच्चे साथी को पाना दुनिया में
आसान कहाँ ..
मुझसे तो तुम निभा न पाए किससे और
निभाओगे ;
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प्यार -मुहब्बत रिश्ता-नाता सब
कुछ तुम से सच्चा है...
तोड़ के पावन प्यार का बंधन ख़ुश
कैसे रह पाओगे ;
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छोटे-मोटे झगड़े-झंझट हर रिश्ते
में होते हैं ...
तुम ख़ुद ही जब समझ न पाए फिर किसको
समझाओगे ;
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नीचे देख नहीं चलते हो उड़ते सिर्फ़
हवा में हो..
छोटे पत्थर से तुम बचना वरना ठोकर
खाओगे ;
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अपनी राह नहीं चुन पाए औरों से
उम्मीदें क्यूँ...
जैसे कर्म करोगे आख़िर फल वैसा ही
पाओगे ;
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रिश्तों की क़ातिल होती है ये
तलवार तकब्बुर की..
चेत न पाए अगर अभी तुम बाद में
फिर पछताओगे ;
(तकब्बुर-घमंड)
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मांगी थी इमदाद ज़रा सी अपना तुमको
समझा था..
मुझको ये मालूम कहाँ था तुम अहसान
जताओगे ;
(इमदाद-मदद)
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चलती है ये दुनिया ‘तरुणा’ चाहत
के ही दम पर बस..
नफ़रत में गर उलझ गए तो खाक़ में ख़ुद मिल जाओगे...!!
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..........................................................................'तरुणा'...!!!
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