हवा उलटी ही बहती जा रही है..
नई पीढ़ी को ये बहका रही है ;
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हर इक सू नफरतों की आँधियाँ हैं..
सियासत रंग क्या दिखला रही है ;
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चरागों काम है जलना तुम्हारा..
हवा माना कि बढ़ती जा रही है ;
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अभी लगता है सोया है वो तूफां..
जो कश्ती कागज़ी इतरा रही है ;
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उठो 'तरुणा' मुहब्बत ढूँढ लाओ...
इसी की ही कमी तड़पा रही है..!!
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......................................'तरुणा'...!!!
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