इतना
अहसान अब नहीं होता..
मुझसे
नुक़सान अब नहीं होता ;
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सोचना
चाहती हूँ मैं जिसको..
उस
तरफ़ ध्यान अब नही होता ;
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बस्तियाँ
प्यार की बसें फिर से...
ऐसा
एलान अब नहीं होता ;
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बे
ज़मीरी पनप रही है अब..
सब
में ईमान अब नहीं होता ;
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डूबना
था मुझे तलातुम में..
दिल
में तूफ़ान अब नहीं होता ;
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मुन्तज़िर
हुक्म की रही उनके...
कोई
फ़रमान अब नही होता ..!!
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.....................................'तरुणा'....!!!
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Itna ehsaan ab nahi hota ..
Mujhse nuksaan ab nahi hota
;
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Sochna chaahti hun main jisko ..
Us taraf dhyaan ab nahi hota ;
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Bastiyaan pyaar ki base phir se …
Aisa ailaan ab nahi hota ;
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Be zameeri panap rahi hai ab..
Sab me imaan ab nahi hota ;
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Doobna tha mujhe talatum me…
Dil me toofaan ab nahi hota ;
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Muntzir hukm ki rahi unke…
Koi farmaan ab nahi hota …!!
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…………………………………’Taruna’….!!!
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