मेरी बातें हज़ार
करता है...
इश्क़ क्यूँ इश्तहार
करता है ;
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वक़्त जब भी शिकार करता है..
फिर कहाँ होशियार करता है ;
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यार से तो रक़ीब
बेहतर है ..
सामने से तो वार
करता है ;
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बारहा ज़ख्म भी दिए उसने..
अब गिले भी हज़ार
करता है ;
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वो हमेशा से तो पराया था..
दिल उसे फिर भी प्यार करता है ;
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चोट पर चोट दी मुझे
जिसने..
कहता है जां
निसार करता है ;
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क्यूँ निग़ाहों से वो गिराने
की...
कोशिशें बार बार करता है ;
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रेल याद़ों की रात भर गुज़री...
कौन फिर अश्क़बार करता
है ;
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हर किसी को मुगालता क्यूँ जब..
काम परवरदिगार करता है ... !!
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............................................'तरुणा'..!!!