मत
लिबासों से परखियेगा , किसी मेहमान को ..
आप
ठुकरा ही न दें , शायद कभी भगवान को ;
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मुश्किलों
के दौर में , जिस शख्स ने की हो मदद ..
भूलियेगा
मत कभी उस , दोस्त के अहसान को ;
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नासमझ
बनता रहा , लफ्जों-नज़र से , जो मेरी ...
रोज़
ख़त लिखते रहे , हम भी , उसी नादान को ;
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रेशमी
कपड़ों , मुकल्लफ़ ज़ेवरों में , जो दबे...
ज़िंदगी
अब भी पुकारे उन , घुटे अरमान को ;
(मुकल्लफ़-कीमती/costly)
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बढ़
गया रुतबा हमारा , दौलतो-असबाब से ....
बस
ग़नीमत है यही , भूले नहीं ईमान को ;
.
वो
मुकद्दस इश्क़ मेरा , दर्द बनकर रह गया...
पास
दिल के रख लिया , उस कीमती सामान को ;
(मुकद्दस- पवित्र/ Pure)
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सांस
में अब भी समाई , है उसी की जो महक...
हर
जगह पर ढूंढ़ते हैं बस , उसी पहचान को ;
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जी
यही करता हमारा , छोड़ कर इस महल को..
ख़ोज
लायें उस पुराने , टूटते दालान को ;
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इंतिहा
ये भी हुई है , प्यार में अक्सर कि हम ...
मौन
रहकर मान लेतें हैं , सभी
फरमान को ..!!
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.....................................................................'तरुणा'...!!!
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Mat
libaason se parkhiyega , kisi mehmaan ko ...
Aap
thukra hi na den , shyada kahin Bhafwaan ko ;
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Mushkilon
ke daur me , jis shakhs ne ki ho madad...
Bhooliyega
mat kabhi us , dost ke ehsaan ko ;
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Nasamajh
banta raha , lafz-o-nazar se jo meri ..
Roz khat
likhte rahe , ham bhi usee nadaan ko ;
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Reshmi
kapdon , muqallaf zeveron me jo dabe ...
Zindgi ab
bhi pukaare , un ghute armaan ko ;
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Badh gaya
rutba hamara , daulat-o-asbaab se ..
Bas
ganeemat hai yahi , bhule nahi imaan ko ;
.
Wo
mukaddas ishq mera , dard bankar rah gaya ..
Paas dil
ke rakh liya us , keemati saaman ko ;
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Saans me
ab bhi samayi hai , usee ki jo mehak ...
Har jagah
par dhoondhte hain , bas usee pehchaan ko ;
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Jee yahi
karta hamara , chhod kar is mahal ko ...
Khoj
Laaye us puraane , toot'te dalaan ko ;
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Intihaan
ye bhi huyi hai , pyaar me aksar ki ham ..
Maun
rahkar maan lete hain , sabhi farmaan ko ..!!
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...........................................................................'Taruna'...!!!
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