ज़रा
तनहा दिखे जो हम , चहक उठता है सन्नाटा..
जब
उसकी याद आती है ,
धड़क
उठता है सन्नाटा ;
.
जरा
सी देर को भी जो ,
हुए
नज़रो से वो ओझल...
किसी
कांटे के चुभने सा ,
कसक
उठता है सन्नाटा :
.
चले
यादो की पुरवाई , या हों वो चांदनी
रातें..
मचलने
लगता है ये दिल , बहक उठता है सन्नाटा ;
.
ज़रा
सी ढील दी देते ही ,
बढ़ी है दूरियां कितनी...
ज़रा
सा कस दिया तो फिर ,
चटक
उठता है सन्नाटा ;
.
मुहब्बत
के बिना हर पल , बहुत बेचैन रहता है ..
मिली
जब इश्क़ की ख़ुश्बू , महक उठता है सन्नाटा ;
.
लगाया
हमने जो दिल से , कोई भी प्रेम का पौधा..
वो
जब भी लहलहाया है , लहक उठता है सन्नाटा ;
.
मैं
जब भी उससे कहती हूँ , चला
जा छोड़ के मुझको..
गले
मिलके , निग़ाहों से छलक उठता है सन्नाटा ;
.
हुई
बारिश मुहब्बत की ,
मेरे
शानो पे जब जब भी..
इन्हीं
बारिश की बूंदों में , खनक
उठता है सन्नाटा ..!!
.
.....................................................................’तरुणा’...!!!
.
Zara
tanha dikhe jo ham , chehak uthta hai
sannaata ..
Jab uski
yaad aati hi , dhadak uthta hai sannaata
;
.
Zara si
der ko bhi jo , huye nazron se , wo ojhal ...
Kisi
kaante ke chhubhne sa , kasak uthta hai sannaata ;
.
Chale
yaadon ki purwaai , ya ho vo chaandni raatein..
Machalne lagata hai
ye dil , behak uthta hai sannaata
;
.
Zara bhi
dheel dete hi , badhi
hain dooriyaan kitni
Zara sa
kas diya to phir , chatak uthta hai
sannaata ;
.
Muhabbat
ke bina har pal , bahut bechain rahta hai..
Mili jab
ishq ki khushboo , mehak uthta hai
sannaata ;
.
Lagaya
hamne jo dil se , koi bhi prem ka paudha...
Wo jab
bhi lahlaahaya hai , lehak uthta hai
sannaata ;
.
Main jab
bhi ussey kahti hun , chala ja chhod
kar mujhko ..
Gale mil
ke, nigaahon se chhalak uthta hai sannaata ;
.
Huyi
baarish muhabbat ki , mere shano pe jab jab bhi..
Inheen
baarish ki boondo me , khanak uthta hai sannaata ...!!
.
...................................................................................'Taruna'...!!!
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